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Sunday, 29 June 2025
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Derek O’Brien’s column – How long will our countrymen from the Northeast continue to be discriminated against? | डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: पूर्वोत्तर के हमारे देशवासियों के साथ भेदभाव कब तक?

Derek O’Brien’s column – How long will our countrymen from the Northeast continue to be discriminated against? | डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: पूर्वोत्तर के हमारे देशवासियों के साथ भेदभाव कब तक?

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2 घंटे पहले

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डेरेक ओ ब्रायन लेखक सांसद और राज्यसभा में टीएमसी के नेता हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 मई, 2025 को कहा था कि ‘आज गणेश-प्रतिमाएं भी विदेशों से आती हैं। छोटी आंख वाली प्रतिमाएं, जिनकी आंखें ठीक से खुलती भी नहीं।’ पूर्वोत्तर के निवासी लंबे समय से नस्ली पूर्वग्रह और हिंसा झेल रहे हैं।

2014 में दिल्ली में अरुणाचल प्रदेश के एक किशोर की हत्या के बाद बेजबरुआ कमिटी बनी थी। कमिटी ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि भारतीय महानगरों में पूर्वोत्तर के 10 में से 9 लोगों को नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ता है। एक अन्य रिपोर्ट में बताया गया कि पूर्वोत्तर की हर तीन में से दो महिलाएं किसी ना किसी प्रकार के भेदभाव की शिकार होती हैं।

सबसे ताजा उदाहरण मेघालय हनीमून कांड का है, जो सुर्खियों में छाया रहा है। सोशल मीडिया पर मनगढ़ंत खबरों के जरिए एलीफेंट फॉल्स, डबल-डेकर लिविंग रूट ब्रिज, माव्स्माई गुफा जैसे दर्शनीय स्थलों वाले राज्य की छवि धूमिल की गई। न केवल मेघालय, बल्कि पूरे पूर्वोत्तर को बदनाम करने का अभियान चलाया गया। वहां के निवासियों के खानपान से लेकर उनकी कद-काठी और भाषा को भी नहीं बख्शा गया।

सार्वजनिक क्षेत्र में ऐसा बहुत कम आधिकारिक डेटा है, जो पूर्वोत्तर के निवासियों के योगदान को बताता हो, खासतौर पर हॉस्पिटैलिटी, विमानन और स्वास्थ्य क्षेत्र में। नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (एनएसएसओ) के 2020 के सर्वेक्षण के अनुसार पूर्वोत्तर के राज्यों की प्रत्येक चार में से एक प्रवासी महिला हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में कार्यरत है। पांच साल बाद यह आंकड़ा और बढ़ा ही होगा। सर्वे में सामने आया कि इनमें से अधिकतर महिलाएं अनौपचारिक, कम वेतन और बगैर सामाजिक सुरक्षा वाली नौकरियों में हैं।

मेरा पूर्वोत्तर से पुराना नाता और विशेष लगाव है। 1991 में मैने एडवरटाइजिंग की नौकरी छोड़कर क्विज शो करना शुरू किया। शुरुआती सालों में ये क्विज गुवाहाटी, शिलॉन्ग, कोहिमा, इम्फाल, दीमापुर समेत पूर्वोत्तर के कई शहरों में हुए थे। ये शो एक इंस्टैंट नूडल्स ब्रांड के प्रचार के लिए थे, जिसका उन क्षेत्रों में एक बड़ा बाजार था।

हर शो के लिए मुझे 2500 रुपए मिलते थे। लेकिन साथ ही वह पूर्वोत्तर की यात्रा करने और उसे अच्छी तरह से समझने का बेहतरीन अवसर भी था। मैंने वहां के लोगों को हमेशा अपने स्वागत के लिए तत्पर पाया। जब भी कोई उनका गलत चित्रण करता है तो मुझे बेहद तकलीफ होती है।

इस लेख को लिखते समय मैंने मणिपुर की 30 वर्षीय महिला तोंशिमला लीसन से बात की। वो एक प्रतिष्ठित एयरलाइन के केबिन क्रू में कार्यरत हैं। उन्होंने मुझे बताया कि एक वर्ष पहले दिल्ली मेट्रो में कुछ युवा उन्हें और मेरी मां को घूरे जा रहे थे।

उन्होंने उन्हें देखकर ‘चाइनीज’, ‘चिंकी’ जैसी फब्तियां भी कसीं। उनके सहकर्मी भी उनके नामों को लेकर मजाक बनाते हैं। जहां कई या​त्री उनकी कड़ी मेहनत की तारीफ करते हैं, वहीं कई अन्य उन्हें अकसर नीचा दिखाने की कोशिश करते हैं।

हाल ही में हादसे के शिकार हुए एअर इंडिया विमान के केबिन क्रू की दो सदस्य भी मणिपुर से थीं। एक कुकी और दूसरी मैतेई समुदाय से थी। लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। दु:ख की घड़ी में पूरा मणिपुर एकजुट था।

कोरोना के दौरान तो पूर्वोत्तर के लोगों के खिलाफ भेदभाव के मामले कई गुना बढ़ गए थे। दिल्ली की नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर क्रिमिनोलॉजी एंड विक्टिमोलॉजी की ओर से हुए एक अध्ययन में सामने आया कि भारत के लोग जब चीन के लोगों की कल्पना करते हैं तो उसमें पूर्वोत्तर के लोग बिल्कुल फिट बैठते हैं। इससे उनके खिलाफ घृणा के मामले बढ़ रहे हैं।

पिछले दिनों संसद में मणिपुर पर दो बार चर्चा हुई। पहली बार 2023 में, जब विपक्ष सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आया और दूसरी बार इस साल अप्रैल में। गृह मंत्री अमित शाह ने सदन में कहा कि ‘13 फरवरी को मणिपुर में राष्ट्रपति शासन लागू किया गया था। बीते नवंबर से लेकर अब तक वहां कोई हिंसा नहीं हुई। इसलिए हमें गलत धारणा बनाने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।’

गृह मंत्री के भाषण से कुछ देर पहले ही आपके इस स्तम्भकार ने राज्यसभा में कहा था कि ‘बीते 22 महीनों में प्रधानमंत्री ने देश-विदेश में 3.80 लाख किलोमीटर की यात्रा की है। यह दूरी पृथ्वी से चंद्रमा के बराबर है। लेकिन प्रधानमंत्री दिल्ली से 2400 किलोमीटर दूर मणिपुर नहीं जा पाए। आज हम रात के तीन बजे संसद में मणिपुर पर चर्चा कर रहे हैं। कोई टीवी चैनल नहीं है, कोई प्राइम टाइम नहीं है। मणिपुर को दिन के उजाले में सीधे उसकी आंखों में झांककर देखा जाए!’

आंकड़ों के अनुसार पूर्वोत्तर के राज्यों की प्रत्येक चार में से एक प्रवासी महिला हॉस्पिटैलिटी सेक्टर में कार्यरत है। इनमें से भी अधिकतर महिलाएं अनौपचारिक, कम वेतन और बगैर सामाजिक सुरक्षा वाली नौकरियों में काम कर रही हैं। (ये लेखक के अपने विचार हैं। इस लेख के सहायक-शोधकर्ता आयुष्मान डे हैं।)

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