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Monday, 30 June 2025
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Thomas L. Friedman’s column – The history of the Middle East could change after this war | थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम: इस युद्ध के बाद मध्य-पूर्व का इतिहास बदल सकता है

Thomas L. Friedman’s column – The history of the Middle East could change after this war | थॉमस एल. फ्रीडमैन का कॉलम: इस युद्ध के बाद मध्य-पूर्व का इतिहास बदल सकता है

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3 घंटे पहले

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थॉमस एल. फ्रीडमैन, तीन बार पुलित्ज़र अवॉर्ड विजेता एवं ‘द न्यूयॉर्क टाइम्स’ में स्तंभकार

ईरान के परमाणु बुनियादी ढांचों पर हमलों को मध्य-पूर्व के इतिहास की एक गेमचेंजर घटना कहना चाहिए। ये जिन घटनाक्रमों को गतिशील करेंगे, उनके दो नतीजे निकल सकते हैं। एक तो यह कि ईरान की हुकूमत गिर जाएगी और उसके स्थान पर एक अधिक धर्मनिरपेक्ष और सर्वसम्मत शासन की स्थापना की जा सकती है। दूसरा यह कि यह संघर्ष पूरे क्षेत्र को आग में झोंक सकता है और अमेरिका को भी इसमें उलझा सकता है। एक मध्य-मार्ग और है : आपसी बातचीत से समाधान, अलबत्ता वह टिकाऊ नहीं होने वाला।

इस युद्ध की सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इस बार इजराइल ने ईरान की परमाणु हथियार बनाने की क्षमता को खत्म करने तक लड़ाई जारी रखने की कसम खाई है। और इसके लिए ईरान ही दोषी है। उसने अपने यूरेनियम संवर्धन को बहुत तेजी से बढ़ाया है।

उसने अपने इन प्रयासों को इस हद तक आक्रामक रूप से छिपाया कि अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को भी कहना पड़ा ईरान अपने परमाणु अप्रसार दायित्वों का पालन नहीं कर रहा है। वैसे, इजराइल ने पिछले 15 वर्षों में कई बार ईरानी परमाणु कार्यक्रम पर निशाना साधा है, लेकिन हर बार वह या तो अमेरिकी दबाव में या अपनी सैन्य क्षमताओं पर संदेह के कारण अंतिम समय पर पीछे हट गया था।

लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इजराइल द्वारा नतांज जैसी परमाणु संवर्धन फेसिलिटीज़ पर बमबारी ने यूरेनियम संवर्धन के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले सेंट्रीफ्यूज को पर्याप्त नुकसान पहुंचा दिया है, जिससे वे कुछ समय के लिए निष्क्रिय हो गए हैं?

इससे और कुछ नहीं तो ईरान का काम जरूर धीमा हो जाएगा और यह इजराइल की कोई मामूली उपलिब्ध नहीं होगी। हालांकि अभी यह स्पष्ट नहीं है कि फोर्दो स्थित न्यूक्लियर फेसिलिटी को नुकसान पहुंचाया गया है या नहीं।

सवाल यह भी है कि इस संघर्ष का इराक, लेबनान, सीरिया और यमन पर क्या असर होगा, क्योंकि वहां पर ईरान एक लंबे समय से अपना प्रभाव जमाए हुए है और सशस्त्र उग्रवादियों को पोषित करता आया है। हिजबुल्ला की रीढ़ तोड़ने से इस परिदृश्य में बदलाव की शुरुआत पहले ही हो चुकी है और लेबनान-सीरिया में पहले ही इसका लाभ मिल चुका है, जहां नए, बहुलतावादी नेताओं ने सत्ता संभाली है। ईरान के प्रभाव-क्षेत्र से इराक का पलायन भी वहां के लोगों के बीच व्यापक रूप से लोकप्रिय रहा है।

एक दृष्टिकोण यह भी है कि ईरान भी जानबूझकर तेल की कीमतों को आसमान छूने के लिए मजबूर करके ट्रम्प प्रशासन को अस्थिर करने की कोशिश कर सकता है और पश्चिमी देशों में मुद्रास्फीति बढ़ा सकता है। इसके लिए उसे होर्मुज स्ट्रैट में कुछ तेल या गैस टैंकरों को डुबोना भर होगा और निर्यात प्रभावी रूप से अवरुद्ध हो जाएगा। वास्तव में इसकी संभावना ही तेल की कीमतों को बढ़ाने के लिए काफी है।

आप इजराइल की खुफिया क्षमताओं पर भी ताज्जुब कर सकते हैं, क्योंकि उसने ईरान के शीर्ष मिलिट्री अधिकरियों की सटीक लोकेशन खोजकर उन्हें मार गिराया है। इससे मालूम होता है कि कितने ईरानी अधिकारी इजराइल के लिए काम करने के लिए तैयार हैं, क्योंकि वे अपनी सरकार को नापसंद करते हैं।

हालत यह है कि हर बार जब ईरान के सैन्य और राजनीतिक नेता इजराइल के खिलाफ ऑपरेशन की योजना बनाने के लिए इकट्ठा होते हैं, तो उनमें से प्रत्येक को खुद से पूछना पड़ता है कि कहीं उनके बगल में बैठा व्यक्ति इजराइल का एजेंट तो नहीं? ईरान के सर्वोच्च नेता ने अपने प्रमुख जनरलों को अपनी आंखों के सामने मरते देखा है और उन्हें निश्चित रूप से पता है कि इजराइल उन्हें भी कभी भी खत्म कर सकता है।

गाजा के विपरीत इजराइल ने ईरानी नागरिकों पर हमला करने से बचने के लिए हरसंभव प्रयास किया है, क्योंकि अंततः इजराइल चाहता है कि वे खुद अपनी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करें। क्योंकि उसने उनकी बेहतरी के बजाय परमाणु हथियार बनाने में बहुत सारे संसाधनों को बर्बाद कर दिया है। ईरान के लोग भले ही नेतन्याहू की अपील से प्रेरित न हों, लेकिन यह तय है कि ईरान की हुकूमत अवाम में लोकप्रिय नहीं है।

लेकिन अगर इजराइल अपने प्रयास में विफल हो जाता है और तमाम चोटें खाने के बावजूद ईरान परमाणु हथियार बनाने में सक्षम हो जाता है तो इससे क्षेत्र पहले से कहीं अधिक अस्थिर हो जाएगा। तेल संकट भी बढ़ेगा। और संभवतः ईरान अमेरिका-समर्थक अरब शासनों पर हमला करने के लिए प्रेरित हो सकता है। तब अमेरिका के पास इस लड़ाई में कूदने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।

इजराइल चाहता है कि ईरान के लोग भी अपनी हुकूमत के खिलाफ आंदोलन करें। उसने उनकी बेहतरी के बजाय परमाणु हथियार बनाने में बहुत सारे संसाधनों को बर्बाद कर दिया है। ईरान की हुकूमत अवाम में लोकप्रिय नहीं है। (द न्यूयॉर्क टाइम्स से)

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