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Sunday, 29 June 2025
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N. Raghuraman’s column – Has the digital world affected children’s ability to manage money? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या डिजिटल दुनिया ने बच्चों के पैसों के प्रबंधन की क्षमता को प्रभावित किया है?

N. Raghuraman’s column – Has the digital world affected children’s ability to manage money? | एन. रघुरामन का कॉलम: क्या डिजिटल दुनिया ने बच्चों के पैसों के प्रबंधन की क्षमता को प्रभावित किया है?

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12 मिनट पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

आपको मेरी-गो-राउंड याद है- एक बड़ा गोल प्लेटफॉर्म जो एक सर्कल में घूमता है और जिसमें सीटें और जानवरों (जैसे घोड़े) की आकृतियां होती हैं, उन पर बच्चे बैठते हैं और सवारी करते हैं? आखिरी बार 1960 के दशक में जब मैंने इसकी सवारी की थी, तब वह 3 पैसे की थी!

हां, मुझे 5 पैसे का सिक्का दिया गया था और मुझे एक बार की सवारी करने और 2 पैसे बचाकर लाने की अनुमति थी। लेकिन झूले के मालिक ने मुझे केवल 2 पैसे में दूसरा चक्कर भी लगाने के लिए मना लिया और मैंने उस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, मानो मुझमें मोल-भाव करने का बहुत अच्छा कौशल हो। लेकिन 2 पैसे के अनावश्यक खर्च के लिए मां ने मुझे दंडित किया था।

5 साल की उम्र में पैसों के प्रबंधन को लेकर यह मेरा पहला सबक था। बाद में कई मौकों पर- जब तक कि मैंने अपना स्कूल पास नहीं किया- मैं साइकिल से थोक बाजार जाता था और घर के लिए कई छोटी-मोटी खरीदारी करके 5 से 25 पैसे के बीच कुछ भी बचा लेता था। तब मुझे उस समझदारी के लिए कुछ हिस्सा देकर पुरस्कृत किया जाता था।

मैंने इस सप्ताह अपनी मेड को यह घटना सुनाई, जिसे मैंने मोबाइल पर अपनी 10 वर्षीय बेटी से बात करते सुना था। स्कूल जाने वाली वह बच्ची फोन पर रो रही थी और अपनी मां को ड्राइंग वर्कबुक खरीदना भूल जाने को लेकर दोषी ठहरा रही थी। जब मां ने पूछा कि उसकी कीमत कितनी है, तो बच्ची ने कहा 20 रुपए।

मां ने उसे दुकान पर जाकर फोन करने को कहा, ताकि वह दुकानदार को डिजिटली पैसे ट्रांसफर कर सके। बच्ची भागकर दुकान पर गई और दुकानदार को फोन दिया, जिसने बताया कि किताब की कीमत 18 रुपए है।

मैं सोच रहा था कि अगर मेड ने बच्ची को 20 रुपए नकद दिए होते, तो उसके खुद पर 2 रुपए खर्च करने की संभावना अधिक होती। लेकिन बच्ची ने वह 2 रुपए की पॉकेट मनी गंवा दी, जिससे उसे कुछ खुशी मिल सकती थी।

इससे मुझे लगा कि जब पॉकेट मनी और बच्चों की जरूरतों पर खर्च होने वाले आधे से अधिक खर्च डिजिटल हो रहे हैं, तो क्या हमारे नजरिए, सीख और आदतें भी इसके साथ बदल रही हैं? लगता तो यही है। इसके लिए मेरी दलीलें इस प्रकार हैं।

आज भी जब हम पैसे शब्द सुनते हैं तो हम अभी भी सिक्कों और नोटों के बारे में सोचते हैं। महीने के अंत में भी मेरे पास हमेशा महीने की शुरुआत में मिलने वाली 5 रुपए की पॉकेट मनी में से कम से कम 1 रुपया बचा होता था। लेकिन चूंकि हमारे बच्चे भौतिक धन से जुड़ाव की भावना खो चुके हैं और वे उन्हें अपने पास अब बिलकुल भी नहीं रखते हैं, इसलिए वे यह भी भूल गए हैं कि उन्होंने पूरे महीने में माता-पिता से कितना लिया है।

पैसे कैरी करने वाला मोबाइल फोन अब किसी बच्चे को पैसे जैसा नहीं लगता और वह उसे नकदी के बजाय एक फोन ही मानता है। इसलिए मुझे लगता है कि उनकी खर्च करने की भावना तो ऊंची बनी हुई है, वहीं बचत की भावना गंभीर रूप से प्रभावित हुई है।

यूके में 3 से 18 वर्ष की आयु के 1,067 बच्चों पर किए गए एक सर्वेक्षण से हमारे बच्चों की बदलती आदतों पर प्रकाश पड़ता है। इसमें पाया गया कि अधिकांश बच्चे रोजमर्रा की किराने की वस्तुओं की कीमत नहीं जानते। लेकिन वे महसूस करते हैं कि सही समर्थन के साथ डिजिटल-शिफ्ट से कई अवसर सामने आए हैं।

जाहिर है कि डिजिटल बदलाव बच्चों को अपने पैसों का प्रबंधन करने और इस बात को प्राथमिकता देने के लिए उपकरण और तकनीक प्रदान करता है कि वे कैसे खर्च करें और किसके लिए बचत करें। कई माता-पिता ने महसूस किया कि ऑनलाइन ऐप के माध्यम से तुरंत खरीदारी के युग में उनके बच्चों का जेब-खर्च अगले वेतन तक नहीं टिकता है और वे बीच-बीच में कुछ अतिरिक्त पैसे मांगते रहते हैं।

फंडा यह है कि जब यह समझने की बात आती है कि डिजिटल लेनदेन ने हमारे बच्चों द्वारा अपने पैसों के प्रबंधन की समझ को कैसे प्रभावित किया है, तो इस पर हमें विभाजित राय मिलती हैं। आप क्या सोचते हैं?

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Anuragbagde69@gmail.com

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