बिहार में विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची की विशेष गहन समीक्षा को लेकर विपक्षी दलों की आपत्ति के बीच चुनाव आयोग ने सोमवार को स्पष्ट किया कि मतदाता सूची एक गतिशील सूची है, जिसमें समय-समय पर बदलाव होते रहते हैं, इसलिए इसकी नियमित समीक्षा अनिवार्य है। चुनाव आयोग ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 326 यह तय करता है कि केवल भारतीय नागरिक, जो 18 वर्ष या उससे अधिक आयु के हैं और निर्वाचन क्षेत्र के सामान्य निवासी हैं, वोटर के रूप में पंजीकृत हो सकते हैं।
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क्यों जरूरी है गहन समीक्षा?
चुनाव आयोग ने बताया कि मतदाता सूची में निरंतर बदलाव होते हैं क्योंकि कई मतदाताओं की मृत्यु हो जाती है। कुछ लोग एक जगह से दूसरी जगह स्थानांतरित हो जाते हैं और नए युवा मतदाता 18 साल पूरे करके वोटर बनने के योग्य हो जाते हैं। इन्हीं कारणों से मतदाता सूची को समय-समय पर अद्यतन करना जरूरी होता है, ताकि कोई अपात्र व्यक्ति उसमें दर्ज न हो और कोई पात्र नागरिक छूटे नहीं।
विपक्ष की आपत्ति और चुनाव आयोग की सफाई
विपक्षी दलों ने आरोप लगाया कि इस तरह की गहन समीक्षा से राज्य तंत्र का दुरुपयोग कर जानबूझकर वोटरों को बाहर किया जा सकता है। इस पर चुनाव आयोग ने कहा कि यह प्रक्रिया नियमों के अनुसार पारदर्शिता से होती है और इसका उद्देश्य किसी को बाहर करना नहीं, बल्कि सही और अद्यतन सूची बनाना है।
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2003 की बिहार मतदाता सूची हुई सार्वजनिक
चुनाव आयोग ने बिहार की 2003 की मतदाता सूची, जिसमें करीब 4.96 करोड़ मतदाता थे, को अपनी वेबसाइट पर ऑनलाइन अपलोड कर दिया है। यह सूची मतदाताओं को पुराने रिकॉर्ड के रूप में दस्तावेजी प्रमाण देने में मदद करेगी, जिससे वे अपना नाम सत्यापित कर पाएंगे और नया एनुमरेशन फॉर्म भर पाएंगे। चुनाव आयोग ने बताया कि इससे करीब 60% वोटरों को कोई अतिरिक्त दस्तावेज नहीं देना होगा, वे बस 2003 की सूची से अपना विवरण जांचकर फॉर्म भर सकते हैं।
पारिवारिक संबंधों में भी सहूलियत
यदि कोई व्यक्ति 2003 की सूची में दर्ज नहीं है, पर उसके माता-पिता उस सूची में हैं, तो वह व्यक्ति अपने माता या पिता के नाम का 2003 की मतदाता सूची का अंश दिखाकर आवेदन कर सकता है। ऐसे में माता-पिता के लिए कोई अलग दस्तावेज देने की जरूरत नहीं होगी, सिर्फ उस व्यक्ति को अपने दस्तावेज देने होंगे। चुनाव आयोग ने दोहराया कि प्रत्येक चुनाव से पहले मतदाता सूची का पुनरीक्षण जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1950 और वोटर रजिस्ट्रेशन नियम 1960 के तहत अनिवार्य है। आयोग पिछले 75 वर्षों से नियमित रूप से वार्षिक संशोधन, जिसमें गहन और संक्षिप्त समीक्षा शामिल है, करता आ रहा है।