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Saturday, 26 July 2025
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N. Raghuraman’s column – Why you should learn soft skills during graduation | एन. रघुरामन का कॉलम: ग्रेजुएशन के दौरान आपको सॉफ्ट स्किल्स क्यों सीखनी चाहिए

N. Raghuraman’s column – Why you should learn soft skills during graduation | एन. रघुरामन का कॉलम: ग्रेजुएशन के दौरान आपको सॉफ्ट स्किल्स क्यों सीखनी चाहिए

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2 घंटे पहले

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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु

पिछले सप्ताह मैं परिवार के एक सदस्य के परामर्श के लिए भोपाल के कुछ डॉक्टरों से मिला। इनमें शामिल थे डॉ. अरुण तिवारी, रूमेटोलॉजिस्ट (जो जोड़ों, मांसपेशियों, हड्डियों और कभी-कभी अन्य अंगों पर असर करने वाली स्थितियों पर फोकस करते हैं, जिनमें आमतौर पर सूजन या इम्यून सिस्टम की खराबी शामिल होती है), डॉ. गोपाल बटनी, एएचसी मेडिसिन विशेषज्ञ (जो दवा प्रबंधन और विविध मेडिकल स्थितियों को देखते हैं), डॉ. संदीप जैन, एंडोक्राइनोलॉजिस्ट (जो हार्मोन स्रवित करने वाले अंगों को देखते हैं), डॉ. गौरव खंडेलवाल, इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट (जो मिनिमल इन्वेसिव और कैथेटर-आधारित प्रक्रिया के जरिए हृदय और रक्त वाहिकाओं का उपचार करते हैं), डॉ. अकिलेश्वर सिंह राठौर, नॉन इन्वेसिव कार्डियोलॉजिस्ट (जो सर्जरी और दूसरी इन्वेसिव तकनीकों के ​बगैर बाहरी परीक्षणों और प्रक्रियाओं से हृदय रोग प्रबंधन करते हैं), सिद्धार्थ मलैया, नेत्र रोग विशेषज्ञ और डॉ. अंकित मिश्रा, ईएनटी विशेषज्ञ।

मुझमें और इन डॉक्टरों के बीच एक समानता थी कि वे मुझे नहीं जानते थे और मुझे भी यह पता नहीं था कि उन्होंने किस स्कूल से पढ़ाई की या किस वर्ष से प्रैक्टिस शुरू की। लेकिन उनसे दो घंटे परामर्श के बाद मुझे बहुत अच्छा लगा। मैं तो कहूंगा उन्होंने मुझे बेहतर महसूस कराया।

उनके पास बेहतरीन ‘बेड साइड मैनर्स’ थे, यानी वो तरीका, जिसके जरिए डॉक्टर बीमार लोगों का इलाज करते हैं। इसमें करुणा दिखाना, मैत्रीपूर्ण और मरीज को समझने वाला व्यवहार शामिल है। एक ही पाठ्यक्रम से डिग्री हासिल करने के बाद उन सभी ने अलग-अलग क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल की थी, लेकिन उन सभी में समस्या-समाधान क्षमता, विविध दृष्टिकोण, विश्लेषणात्मक सोच जैसी सॉफ्ट स्किल्स थीं। मुझे यकीन है कि ये गुण उनके पाठ्यक्रम में तो शामिल नहीं होंगे। उन्होंने जरूरत आने पर ऐसी और कई सारी सॉफ्ट स्किल्स का प्रदर्शन किया।

एक डॉक्टर से मुलाकात का इंतजार करते वक्त मैं एक युवा मरीज से मिला। वह सॉफ्टवेयर इंजीनियर था। वह बता रहा था कि उसने एक एप डेवलप किया और एक कैम्पेन लॉन्च किया, जिसने उस एप के डाउनलोड्स में जबरदस्त इजाफा किया। लेकिन वह यह नहीं समझा सका कि उसके दिमाग में यह आइडिया कैसे आया? कैसे लोग उसके साथ जुड़े?

विभिन्न विभागों के बीच तालमेल कैसे बैठाया? जब कंपनी का बजट और प्रोजेक्ट का समय घट रहा था तो ऐसी स्थिति में सांस्कृतिक बदलावों का तत्काल प्रबंधन उसने कैसे किया। वह उन छोटी किन्तु महत्वपूर्ण जानकारियों को देने में पूर्णत: विफल रहा, जो उसकी विभिन्न दृष्टिकोणों से संवाद की क्षमता को प्रदर्शित करतीं और उसे दूसरों से अलग और रुचिपूर्ण दिखातीं।

उसने मुझसे मेरे बारे में पूछताछ करने और एक रिलेशनशिप बनाने में भी रुचि नहीं दिखाई। उसने स्वीकारा कि वह कक्षाओं में नियमित रहता था, लेकिन सिर्फ लंच ब्रेक से पहले, जब बुनियादी विषय पढ़ाए जाते हैं। इसके बाद वह कक्षा से चला जाता था, क्योंकि उसे लगता था कि सॉफ्ट स्किल्स तो उसे आती हैं। उसके जैसे विद्यार्थी यह नहीं समझते कि सॉफ्ट स्किल्स का मतलब भोजन और साज-सज्जा का तौर-तरीका नहीं होता। यह उससे कहीं अधिक है, जैसा ऊपर बताया गया है।

एआई हमारे स्मार्टफोन में स्वतंत्र रूप से घूम रहा है, ठीक वैसे ही जैसे एआई आधारित रोबोट कारखानों की असेंबली लाइनों और रेस्तरां की टेबलों के बीच घूम रहे हैं। इस प्रकार वे 60% उन नौकरियों को हड़प रहे हैं, जो कभी मनुष्य करते थे। किसी को अपनी सॉफ्ट स्किल्स सीवी में लिखने की आवश्यकता नहीं होती, लेकिन वह उन्हें अपने हायरिंग मैनेजर के सामने प्रदर्शित कर सकता है।

लोग अपनी हार्ड स्किल (विषय का ज्ञान) के आधार पर नौकरी तो पा सकते हैं, लेकिन अच्छे प्रोजेक्ट और प्रमोशन सॉफ्ट स्किल्स से ही मिलते हैं। विद्यार्थियों को मेरी सलाह है कि वे अपने ग्रेजुएशन के दिनों में सेकंड हाफ की कक्षाओं में जरूर शामिल हों, जिनमें सॉफ्ट स्किल्स सिखाई जाती हैं।

फंडा यह है कि एआई की प्रमुखता वाले जॉब मार्केट में सॉफ्ट स्किल्स मायने रखती हैं। स्नातक पाठ्यक्रम में इन्हें सीखने से चूकें नहीं। कॉलेज के सेकंड हाफ में इन्हें सीखें। ऐसे ही आप मशीनों की सत्ता वाले सिकुड़ते जॉब मार्केट में पैर जमा सकते हैं।

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Anuragbagde69@gmail.com

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