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- Dr. Aruna Sharma’s Column Tax Related Hurdles Are Coming In The Way Of Becoming ‘cash free’
5 घंटे पहले
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डॉ. अरुणा शर्मा इस्पात मंत्रालय की पूर्व सचिव
बीते सालों में अर्थव्यवस्था की प्रमुख चिंताओं में से एक इसमें काले धन का प्रवाह और नकद लेनदेन रहा है। नोटबंदी के प्रमुख उद्देश्यों में इनकी लगाम कसना भी था। नोटबंदी से बाजार में मौजूद 15 लाख करोड़ की नकदी बैंक खातों में पहुंच गई, और इस प्रकार यह नीति देश की अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण योगदानकर्ता मानी गई। आरबीआई के अनुसार इस साल तक नकद बाजार में फिर से 36 लाख करोड़ रु. हो गए हैं।
लेकिन आज एक ‘कैश-फ्री इकोनॉमी’ में शिफ्ट के सराहनीय उद्देश्य के प्रति समग्र दृष्टिकोण का अभाव नजर आता है। उच्च-स्तरीय आरबीआई समिति की सिफारिशों में से एक यह था कि सरकार के सभी अंगों द्वारा डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित किया जाए और इसे विशेष रूप से कर-प्रोत्साहन दिया जाए।
यही कारण था कि आज जी2पी (सरकार से व्यक्ति) से लेकर पी2जी (व्यक्ति से सरकार) तक के अनेक लेनदेन डिजिटल हो पाए हैं। चाहे वह नकद लाभ का वितरण हो, खरीद के लिए भुगतान हो, ठेकेदारों को भुगतान हो या व्यक्तियों द्वारा बिलों के पेमेंट हों- सरकारी अधिकारियों को किए जाने वाले किसी भी भुगतान में पारदर्शिता लाना, उन्हें आसान बनाना और नकदी पर निर्भरता कम करना ही इस पूरी कवायद का मकसद रहा है। इसके पीछे यह भी सोच थी कि इससे काले धन को छिपाना मुश्किल हो जाएगा।
लेकिन अब यह हो रहा है कि जीएसटी के बहुत अधिक प्रतिशत के कारण फिर से नकदी को प्रोत्साहन मिल रहा है और डिजिटल भुगतान प्रणाली हतोत्साहित हो रही है। यूपीआई, एनईएफटी, आरटीजीएस (रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट), आईएमपीएस (इमिजिएट पेमेंट सर्विस) और बीबीपीएस (भारत बिल पे फॉर बिजनेस) को एनपीसीआई (नेशनल पेमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया) और आरबीआई के नियमों के चलते बढ़ावा मिला था, जिससे लेन-देन आसान हो गया था और इनका उपयोग बढ़ा था। लेकिन अब खबरें आई हैं कि बेंगलुरु में कुछ विक्रेताओं ने अपनी दुकानों पर तख्ती लगा दी है- ‘नो यूपीआई ओनली कैश!’
कारण, कठोर जीएसटी सिस्टम के कारण टर्नओवर वस्तुओं के लिए 40 लाख को पार कर गया है, वहीं यह सेवाओं के लिए सिर्फ 20 लाख रुपए हुआ है। ई-कॉमर्स पर छोटे निर्माताओं और विक्रेताओं की निर्भरता पहले ही सीमित हुई है, क्योंकि इसके लिए जीएसटी नंबर और फिर बोझिल मासिक अनुपालन की आवश्यकता होती है।
ऐसे में कोई भी यह शुतुरमुर्गी दृष्टिकोण नहीं अपना सकता कि जीएसटी की भूमिका केवल अधिकाधिक कर वसूलना हो। एक समग्र दृष्टिकोण अपनाना होगा, क्योंकि जीएसटी का यह पहलू अर्थव्यवस्था को कैश-फ्री बनाने के लक्ष्य को क्षति पहुंचाएगा।
इसलिए डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देकर कर-प्रोत्साहन देने के लिए आरबीआई द्वारा गठित उच्च स्तरीय समिति के अन्य अनुशंसित बिंदुओं की तरह कार्रवाई करने की आवश्यकता है। यदि लेन-देन डिजिटल हैं तो सीमा 40 लाख से बढ़कर 80 लाख हो जाएगी।
ई-कॉमर्स और खाद्य वितरण सेवाओं में वृद्धि को देखें, जहां सेवाओं के लिए 20 लाख की सीमा अतार्किक है। यह केवल टर्नओवर पर आधारित है और उनमें से अधिकतर छोटे मार्जिन पर काम करते हैं और जीएसटी को वहन नहीं कर सकते। प्रतिस्पर्धी बाजार में ग्राहकों पर बोझ बढ़ाना असंभव है।
इसी तरह, आयकर जैसे प्रत्यक्ष करों के लिए भी 80% भुगतान डिजिटल खातों से किए जाने पर छूट मिलनी चाहिए। ये दोनों अभी तक लागू नहीं हुए हैं। जीएसटी के नोटिस- जिसके परिणामस्वरूप नकदी की ओर रुख बढ़ा है- डिजिटल भुगतान प्रणाली में आए विश्वास, तकनीकी और पारदर्शिता के लिए नुकसानदेह साबित होंगे। जबकि सीमा में वृद्धि से छोटे असंगठित क्षेत्र के विक्रेताओं का डर कम होगा और उन्हें उस डिजिटल भुगतान प्रणाली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा, जिस पर देश को गर्व है।
कैश-फ्री इकोनॉमी को बढ़ावा देने के लिए सरकार, रेगुलेटर, भुगतान प्रणाली, कनेक्टिविटी जैसे विभिन्न हितधारकों के मिले-जुले प्रयास अब जीएसटी नोटिसों के प्रति कठोर दृष्टिकोण के कारण बेकार होते दिख रहे हैं।
छोटे विक्रेताओं को जीएसटी नोटिस मिलने से वे क्यूआर कोड हटा रहे हैं और नकद की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। इससे खरीदारों की एक पूरी शृंखला को फिर से कैश की ओर लौटना पड़ेगा। बैंकों के साथ ही बाजारों में भी ग्राहकों की भीड़ बढ़ेगी। यकीनन, यूपीआई का यह लक्ष्य तो नहीं था।
छोटे विक्रेताओं को जीएसटी नोटिस मिलने से वे क्यूआर कोड हटा रहे हैं और नकद की ओर शिफ्ट हो रहे हैं। इससे खरीदारों की एक पूरी शृंखला को फिर से कैश की ओर लौटना पड़ेगा। इससे बैंकों और बाजारों में लोगों की भीड़ भी बढ़ेगी। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)