- Hindi News
- Opinion
- Brahma Chellaney’s Column China’s Activities On The ‘roof Of The World’ Are Dangerous For Everyone
2 दिन पहले
- कॉपी लिंक
ब्रह्मा चेलानी, पॉलिसी फॉर सेंटर रिसर्च के प्रोफेसर एमेरिटस
तिब्बत के पठार पर विशाल ग्लेशियल-रिजर्व्स हैं, जो दुनिया में ताजे पानी के सबसे बड़े भंडारों में से एक हैं। यह दस प्रमुख एशियाई नदी-प्रणालियों का उद्गम भी है- जिनमें चीन की येलो और यांग्त्से, दक्षिण-पूर्व एशिया की मेकांग, साल्विन और इरावदी और भारत की सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदियां शामिल हैं।
ये वैश्विक आबादी के लगभग 20% हिस्से को पानी की आपूर्ति करती हैं। लेकिन आज यही पठार एक आसन्न पर्यावरणीय संकट का साक्षी बन रहा है, जो पूरे एशियाई महाद्वीप की जल सुरक्षा, पारिस्थितिक संतुलन और भू-राजनीतिक स्थिरता को खतरे में डाल सकता है।
पिछले दो दशकों से चीन तिब्बती पठार पर केंद्रित एक आक्रामक बांध निर्माण अभियान में लगा हुआ है। चीन की सरकार ने इसके निचले हिस्से के किसी भी देश के साथ जल-साझाकरण संधि पर बातचीत करने से इनकार कर दिया है। इससे इन देशों को चीन की सनक के परिणाम भुगतने होंगे। पठार की सीमा के पास चीन द्वारा निर्मित भीमकाय-बांधों ने पहले ही मेकांग नदी में पानी के स्तर को अभूतपूर्व रूप से कम कर दिया है, जिसका कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम में मत्स्य-पालन और आजीविका पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा है।
जैसे-जैसे दक्षिणी वियतनाम में मेकांग डेल्टा पीछे हट रहा है, चावल के किसानों को पारंपरिक आजीविका छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। फिर भी चीन की बांध बनाने की महत्वाकांक्षाएं बढ़ती जा रही हैं। यांग्त्से नदी पर बना थ्री गॉर्जेस डैम दुनिया का सबसे बड़ा बांध है।
लेकिन वह भी चीन द्वारा तिब्बती पठार के भूकंपीय रूप से सक्रिय क्षेत्र में ब्रह्मपुत्र नदी (उसे वहां यारलुंग जंगबो कहा जाता है) पर बनाए जा रहे बांध के सामने बौना साबित होगा। अगर यह परियोजना पूरी हो जाती है, तो इससे भारत और बांग्लादेश में पानी के प्रवाह में भारी बदलाव आएगा, क्षेत्र की खाद्य सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन को खतरा होगा और निचले इलाकों के देशों पर चीन का भू-राजनीतिक प्रभाव बढ़ेगा। पानी के हथियारीकरण का खतरा मंडरा रहा है।
दरअसल, पानी तेजी से नया तेल बनता जा रहा है- यानी ऐसा रणनीतिक संसाधन, जो संघर्षों को बढ़ावा दे सकता है। देशों के भीतर और उनके बीच पानी के विवाद पहले ही तेज होते जा रहे हैं। चीन की नजर तिब्बत की खनिज-समृद्ध भूमि- जिसमें लीथियम, सोना, तांबा जैसे महत्वपूर्ण संसाधन हैं- पर भी है। वह वहां पर जंगलों की कटाई कर रहा है और विषाक्त उत्सर्जन में योगदान दे रहा है। उसकी ये तमाम गतिविधियां तिब्बती पठार के सैन्यीकरण के लिए कवर प्रदान कर रही हैं।
चीन वहां पर जो विनाश-लीला कर रहा है, उसके पूरे ब्योरे जानना असंभव है। यह क्षेत्र अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की नजरों से बहुत दूर है, और स्थानीय तिब्बती समुदायों की आवाजों को दबा दिया जाता है। इस सबसे वहां का पारिस्थितिक तंत्र लगातार कमजोर होता जा रहा है। तिब्बती पठार वैश्विक औसत से दोगुनी गति से गर्म हो रहा है और उसकी बर्फ ध्रुवों की तुलना में तेजी से पिघल रही है। इ
सके दूरगामी निहितार्थ हैं। तिब्बती पठार एशियाई जलवायु, मौसम और मानसून के पैटर्न को गहराई से प्रभावित करता है। इसका क्षरण सूखे और बाढ़ को बढ़ाएगा, जैव विविधता के नुकसान को बढ़ाएगा, कृषि के पतन में योगदान देगा और एशिया और उसके बाहर बड़े पैमाने पर पलायन को बढ़ावा देगा।इन तमाम जोखिमों के बावजूद वैश्विक जलवायु मंचों से लेकर संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक जैसी बहुपक्षीय संस्थाओं तक- अंतरराष्ट्रीय समुदाय तिब्बत को लेकर पूरी तरह से चुप है।
इसका कारण अज्ञानता नहीं, बल्कि डर है। क्योंकि चीन अपने प्रभाव का इस्तेमाल ‘दुनिया की छत’ पर अपनी गतिविधियों की सार्थक आलोचना को दबाने के लिए करता है। जबकि दुनिया के देशों को तिब्बती पठार पर चीन की गतिविधियों के बारे में पारदर्शिता के लिए लगातार दबाव डालना चाहिए। विशेष रूप से, चीन को अपने रियल-टाइम हाइड्रोलॉजिकल डेटा को साझा करने के लिए मजबूर किया जाना चाहिए और उसे अपनी परियोजनाओं को अंतरराष्ट्रीय पर्यावरण मूल्यांकन के लिए प्रस्तुत करना चाहिए।
स्वतंत्र पर्यावरण शोधकर्ताओं को महत्वपूर्ण डेटा एकत्र करने और निष्पक्ष विश्लेषण के लिए पठार तक बेरोकटोक पहुंच प्रदान की जानी चाहिए। चीन को तिब्बतियों के अधिकारों के उल्लंघन के लिए भी जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। 2000 से लगभग दस लाख तिब्बतियों को अपनी पैतृक भूमि से जबरन विस्थापित किया गया है। पश्चिमी सरकारें और बहुपक्षीय संस्थाएं यहां अपना प्रभाव डाल सकती हैं।
- तिब्बत एशिया की पारिस्थितिक जीवनरेखा है। चीन को इसका ऐसे तरीके से दोहन करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए, जिससे पूरे महाद्वीप के लोगों के जीवन को खतरा उत्पन्न हो जाए। चीन की मनमानी पर रोक लगानी जरूरी है।