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- Chetan Bhagat’s Column AI Is Bringing New Opportunities, Provided We Recognize Them
4 घंटे पहले
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चेतन भगत, अंग्रेजी के उपन्यासकार
एआई ने तकनीकी की दुनिया में तहलका मचा रखा है। लार्ज लैंग्वेज मॉडल्स सामने आ चुके हैं। एआई-संचालित उपकरणों जैसे कोडिंग असिस्टेंट्स, वीडियो और ऑडियो जनरेटर आदि का भी प्रसार हुआ है। चैटजीपीटी के रिलीज होने के तीन साल से भी कम समय में एआई टेक और कंसल्टिंग फर्मों का केंद्रबिंदु बन गया है।
दुनिया एआई रिसर्च पर सैकड़ों अरब डॉलर का निवेश कर रही है। ये फंड एआई की सघन कम्प्यूटेशनल मांगों को पूरा करने के लिए एडवांस्ड चिप को आगे बढ़ा रहे हैं। इनके लिए विशालकाय डेटा सेंटर बनाए जा रहे हैं, जो शीर्ष प्रतिभाओं को अपनी ओर खींच रहे हैं।
हाल ही में मेटा ने प्रमुख एआई विशेषज्ञों के लिए 100 मिलियन डॉलर से अधिक के वेतनों की पेशकश की है। अनुमान है कि दुनिया का लगभग हर बड़ा व्यवसाय अगले दशक में अपनी कार्यशैली में एआई को शामिल कर लेगा।
और इसके बावजूद इनमें से ज्यादातर गतिविधियां भारत के बाहर हो रही हैं। हमेशा की तरह हम खुद इनोवेशन करने के बजाय टेक्नोलॉजी आयात करने के लिए ज्यादा तैयार हैं। इसके कई कारण हैं : आधुनिक विज्ञान के प्रति गहरी अरुचि, अतीत को महिमा-मंडित करने का जुनून, ऐसा कॉर्पोरेट माहौल जो संरक्षणवाद और नियमों के प्रबंधन पर ज्यादा केंद्रित है आदि।
इसके विपरीत, अमेरिका और चीन एआई की दौड़ में सबसे आगे हैं। यूरोप भी इस क्षेत्र में प्रासंगिक बने रहने के लिए जद्दोजहद कर रहा है। जो लोग भविष्य के एआई उपकरणों को संचालित करने वाले बुनियादी मॉडल बनाएंगे, वो इस क्षेत्र में अपनी बढ़त को बनाए रखेंगे।
आज नहीं तो कल, भारत में भी एआई हर जगह नजर आएगा। हम दूसरे देशों में विकसित एआई उत्पादों का ही उपयोग करते नजर आएंगे, लेकिन इसके बावजूद हमारे पास कुछ अवसर होंगे। जैसे-जैसे एआई हर बड़े व्यवसाय का हिस्सा बनता जाएगा, नई भूमिकाएं निर्मित होंगी।
एयरलाइंस में एआई टिकटिंग और ग्राहक-सेवा को अधिक कुशलता से संभाल सकता है। अस्पतालों में वह संसाधनों के आवंटन का काम देख सकता है। बैंकों में मानवीय सम्पर्क की आवश्यकता को कम कर सकता है। जो लोग इस बदलाव के साथ खुद को जोड़ते हैं, उन्हें बहुत लाभ होगा। भारत के युवाओं के लिए यह पीढ़ियों में एक बार मिलने वाला अवसर है।
लेकिन हमारे यहां अभी भी बहुत से लोग एआई या उसके निहितार्थों को पूरी तरह से नहीं समझते। हां, चैटजीपीटी का जरूर व्यापक रूप से उपयोग किया जा रहा है, खासतौर पर असाइनमेंट्स में नकल करने या कम मेहनत में टर्म-पेपर पूरे करने के लिए। जो ऐसा कर रहे हैं, वो अपने काम को आउटसोर्स करके खुद को चतुर समझते हैं, पर वे कुछ नया नहीं सीख रहे होते। उलटे वे अपनी बौद्धिक क्षमता कुंद कर रहे होते हैं।
भारत के युवाओं को निष्क्रिय रहकर मोबाइल चलाने की भी लत लग चुकी है। आज करोड़ों लोग दिन में छह से आठ घंटे बिना सोचे-समझे रील्स देखने में बिता रहे हैं। इससे दिमाग सुन्न हो जाता है, फोकस घट जाता है और रचनात्मकता समाप्त हो जाती है।
किताब पढ़ना? नहीं, जब वीडियो देखे जा सकते हैं तो किताबों की झंझट क्यों उठाएं? लेकिन क्या आप किसी ऐसे डॉक्टर पर भरोसा करेंगे, जिसने कोई मेडिकल किताब नहीं पढ़ी और सिर्फ यूट्यूब वीडियो ही देखे हों?
दु:खद सच्चाई यह है कि आज कई युवा भारतीय ठीक से पढ़-लिख नहीं सकते। नतीजतन, वे तर्क नहीं कर सकते और न ही प्रभावी ढंग से कुछ क्रिएट कर सकते हैं। तब उनके लिए क्या भूमिकाएं बची हैं? ज्यादातर कम कौशल वाली, दोहराव वाली नौकरियां- क्लर्क, डिलीवरी कर्मचारी, कॉल सेंटर ऑपरेटर और खाता खोलने या केवाईसी प्रक्रिया जैसे काम। लेकिन इन तमाम नौकरियों को एआई खत्म कर देगा।
तब अनेक निरर्थक काम विलुप्त हो जाएंगे। क्या आपने कभी लिफ्ट ऑपरेटरों को दिन भर महज बटन दबाते देखा है? एआई या तो इन कार्यों को पूरी तरह से अपने हाथ में ले लेगा या उन्हें इतना आसान बना देगा कि एक व्यक्ति पांच लोगों का काम कर सकेगा।
आप कह सकते हैं शारीरिक श्रम का क्या? लेकिन जल्द ही यह भी बदल सकता है। रोबोटिक्स का दौर आ रहा है। एआई-संचालित रोबोट्स बिना थके और बिना किसी शिकायत के काम कर सकते हैं। ऐसे में श्रम-प्रधान नौकरियां भी सुरक्षित नहीं हैं। हमें एआई के क्षेत्र में कदम बढ़ाने की जरूरत है।
अगर हमारे युवा अपने सबसे शक्तिशाली अंग यानी मस्तिष्क का सक्रिय रूप से उपयोग नहीं करते हैं, तो हम स्थायी रूप से एक ब्लू-कॉलर नेशन बनकर रह सकते हैं। हमारा एकमात्र प्रतिस्पर्धी लाभ सस्ता श्रम होगा, और वह भी समय के साथ गुम हो सकता है।
अगर आप युवा हैं तो पढ़ें, लिखें, एआई के नए डेवलपमेंट्स से अवगत रहें। कड़ी मेहनत और अध्ययन करें, अपनी बुद्धि और तर्क-क्षमता को उच्च स्तर पर ले जाएं। दुनिया बदल रही है। आपके पास एक ही जीवन है- इसे बर्बाद ना करें।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)