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Monday, 30 June 2025
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Derek O’Brien’s column – A flight that changed my perspective on life | डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: एक उड़ान, जिसने जीवन के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया

Derek O’Brien’s column – A flight that changed my perspective on life | डेरेक ओ ब्रायन का कॉलम: एक उड़ान, जिसने जीवन के प्रति मेरा नजरिया बदल दिया

10 दिन पहले

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डेरेक ओ ब्रायन लेखक सांसद और राज्यसभा में टीएमसी के नेता हैं

जीवन में कुछ चीजें ऐसी हैं, जिन्हें हम हल्के में लेते हैं। कभी-कभी इस सूची में स्वयं जीवन भी शामिल होता है, चाहे हमें इसका एहसास हो या न हो। बुधवार, 21 मई को मैं दिल्ली से श्रीनगर जाने वाली इंडिगो की फ्लाइट में सवार होता हूं। यह मेरे सार्वजनिक जीवन का एक और दिन है, एक और उड़ान।

मैंने आपातकालीन निकास द्वार पर 19एफ की अपनी चिर-परिचित सीट ली। मैं वो तमाम चीजें कर रहा हूं, जो आमतौर पर फ्लाइट में करता हूं। हवा में 45 मिनट बिताने के बाद एक घोषणा होती है, जिसमें हमें सीटबेल्ट बांधने के लिए कहा जाता है।

लेकिन कोई हलचल (टर्बुलेंस) नहीं है। लगभग पांच मिनट बाद हम बिजली चमकते देखते हैं, जो दिन के उजाले को चीरती हुई मालूम होती है। अब हमें थोड़ा टर्बुलेंस महसूस होता है और यह तेजी से बढ़ने लगता है। मुझे एहसास होता है यह कोई सामान्य स्थिति नहीं है।

विमान डरावने ढंग से दाईं ओर झुक रहा है। मैं एयरबस ए321नियो के दाईं ओर बैठा हूं और मैं विमानों के झुकने का आदी हूं, लेकिन यह हर बार की तरह नहीं है। अब पूरा विमान खतरनाक तरीके से एक तरफ झुकना शुरू हो जाता है।

हम तेजी से नीचे की ओर गिर रहे हैं। यह कोई एक या दो मिनटों की बात नहीं, यह कम से कम दस मिनटों तक चलता है। बाहर केवल बादल, कड़कती बिजलियां और ओलावृष्टि दिखाई देती हैं। मेरा दिमाग में बहुत सारी चीजें चलने लगती हैं।

अब यात्री केबिन से दूसरी आवाजें भी आने लगती हैं। साधारण बातचीत या भोजन परोसने की आवाजें नहीं, बल्कि लोग चिल्ला रहे हैं, प्रार्थना कर रहे हैं। इससे अतिरिक्त तनाव और भय पैदा होता है। कुछ यात्री अपने फोन पर इसे रिकॉर्ड करने लगते हैं कि एक आवाज आती है- वीडियो बनाना बंद करो।

ऐसा नहीं है कि इन लम्हों में मेरा पूरा जीवन मेरी आंखों के सामने चलचित्र की तरह चलने लगा है। इसके बजाय, मैं इस विचार से ग्रस्त हूं कि अगर कुछ बुरा हुआ, तो मैं अपनी इकलौती बेटी की कुछ महीनों बाद होने वाली शादी से चूक जाऊंगा!

मैं अपनी बेटी, पत्नी, सौतेली बेटियों, भाइयों, सहकर्मियों, दोस्तों के बारे में सोचता हूं। मैं सोचता हूं उन सभी को पीछे छोड़ जाना कितना दु:खद होगा। मुझे उनमें से किसी को भी अलविदा कहने का मौका नहीं मिलेगा। यह उन रिश्तों और मैत्रियों के लिए एक गहरा, स्थायी दु:ख है, जिनका इस भयावह दोपहर के बाद कोई अस्तित्व न होगा।

मुझे पता है मेरा जीवन सौभाग्यशाली रहा है। शायद इसका 1990 में कोलकाता की एक गली में जाने से कुछ लेना-देना था, जहां ननों की मंडली का विश्वव्यापी मुख्यालय था। सादगी से भरी उस जगह में एक बरामदे में चार स्टूल रखे थे। यहीं पर मदर टेरेसा (वर्तमान में कलकत्ता की सेंट टेरेसा) से मेरी पहली मुलाकात हुई थी और मैंने उनके हाथ को छुआ था।

तो, मेरे दिमाग में और क्या चल रहा था? मैंने राजनीति के बारे में नहीं सोचा। मैंने संसद के बारे में नहीं सोचा। मैंने एक्स या इंस्टाग्राम पर अपने फॉलोअर्स की संख्या के बारे में नहीं सोचा। मेरा ध्यान उन लोगों पर था, जिन्हें मैं प्यार करता हूं। जो मेरे लिए दुनिया से बढ़कर हैं। जो मेरे जीवन का अहम हिस्सा रहे हैं। मैंने परम-सत्ता से प्रार्थना की। मैंने उनसे एक अनुबंध किया। एक अच्छा व्यक्ति बनने का अनुबंध!

इसके शायद तीस मिनट बाद हम लैंड हुए। लैंडिंग से पहले केबिन-क्रू के एक सदस्य ने हमसे अपनी खिड़कियों के पर्दे नीचे खींचने को कहा, क्योंकि हम एक सैन्य हवाई क्षेत्र में उतर रहे थे। विमान के रुकने के बाद इंजन बंद कर दिए गए और सभी लोग उतरने लगे।

लेकिन मैं बैठा रहा। अकेला ही। क्यों? मुझे नहीं पता। शायद इस सब को अच्छे से प्रोसेस करने के लिए। लेकिन इससे मुझे पायलटों से बात करने का मौका मिला। मैंने सभी यात्रियों और क्रू की ओर से उनका धन्यवाद किया। कप्तान ने मुझे बताया पायलट के रूप में 40 वर्षों की यह सबसे कठिन उड़ान थी।

मैं अब घर लौट आया हूं। उस बात को एक सप्ताह हो गया है। मुझे लगा कि मैं अपने तरीके से इससे निपट लूंगा। लेकिन मैं गलत था। फिर, कुछ घंटे पहले मैंने अपने बचपन के दोस्त से बात की। मुझे बीच में कई बार रुकना पड़ा क्योंकि मेरी भावनाएं बार-बार उमड़ रही थीं। लंबी चुप्पी और दबी हुई सिसकियों के बीच उसने इतना ही कहा, ‘अब सब ठीक है। मैं यहां हूं!’

उस उड़ान ने मुझे बदल दिया। इसने जीवन के हर पहलू को देखने के मेरे तरीके को भी बदल दिया। अब मैं समझ गया हूं कि जीवन एक उपहार है। इसे संजोकर रखना चाहिए। मैं अपना अनुबंध नहीं भूला हूं। वह जीवन के प्रति मेरी इस नई कृतज्ञता का आधार होगा!

वह अनुभव अविस्मरणीय था। गहरा। परिवर्तनकारी। अब मैं पूरी तरह से समझ गया हूं कि जीवन एक उपहार है। इसे संजोकर रखना चाहिए। मैं अपना अनुबंध नहीं भूला हूं। वह जीवन के प्रति मेरी इस नई कृतज्ञता का आधार होगा।

(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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Anuragbagde69@gmail.com

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