पश्चिम एशिया में बढ़ते भू-राजनीतिक तनावों का असर भारत की जीडीपी पर भी पड़ सकता है। क्रेडिट रेटिंग एजेंसी आईसीआरए ने संभावना जताई कि अगर इस संघर्ष से कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 10 डॉलर की बढ़ोतरी होती है, तो भारत के शुद्ध तेल आयात में लगभग 13 से 14 डॉलर की वृद्धि होगी। इससे भारत का चालू खाता घाटा (सीएडी) सकल घरेलू उत्पाद के 0.3 प्रतिशत तक बढ़ सकता है। चालू खाता घाटा एक देश के चालू खाते में आयात और निर्यात के बीच असंतुलन को दर्शाता है। यह वह स्थिति है जब निर्यात से अधिक आयात पर खर्च होता है।
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इसमें कहा गया कि अगर वित्त वर्ष 2026 में कच्चे तेल की औसत कीमत बढ़कर 80 से 90 डॉलर प्रति बैरल हो जाती है, तो सीएडी मौजूदा अनुमान जीडीपी के बढ़कर जीडीपी के 1.5 से 1.6% तक पहुंचने की संभावना है। इससे वित्त वर्ष के दौरान अर्थव्यवस्था पर दबाव पड़ेगा।
ईरान-इस्राइल संघर्ष से जलडमरूमध्य पर संकट
रिपोर्ट में बताया गया कि यह ईरान और इस्राइल के बीच यह संघर्ष 13 जून 2025 को शुरू हुआ। इसने कच्चे तेल की कीमतों को 64 से 65 डॉलर प्रति बैरल से बढ़कर 74 से 75 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंचा दिया है। अमेरिका की एंट्री के बाद ईरान ने होर्मुज जलडमरूमध्य को बंद करने की घोषणा की है, जिससे वैश्विक तेल आपूर्ति में बाधा आ सकती है। होर्मुज जलडमरूमध्य दुनिया के महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों में से एक है। लगभग 20 मिलियन बैरल कच्चा तेल और वैश्विक तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) शिपमेंट का एक तिहाई हिस्सा प्रतिदिन यहां से गुजरता है। यह लगभग 30 मील चौड़ा है और ईरान और ओमान के बीच स्थित है।
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डब्ल्यूपीआई और सीपीआई पर भी पडे़गा असर
आईसीआरए ने उम्मीद जताई कि तेल कीमतों में वृद्धि का असर केवल आयात बिल तक सीमित नहीं रहेगा। इससे थोक मूल्य सूचकांक (WPI) में 80 से 100 आधार अंक और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) में 20 से 30 आधार अंक तक की वृद्धि हो सकती है।
भारत इराक, सऊदी अरब, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात से कच्चे तेल का आयात करता है। भारत का लगभग 45 से 50% कच्चा तेल होर्मुज जलडमरूमध्य के जरिए आता है। प्राकृति गैस के मामले में , भारत का 54% प्राकृतिक गैस होर्मुज जलडमरूमध्य से होकर आता है। एलएनजी का एक बड़ा हिस्सा कतर और यूएई से आता है। इस मार्ग पर कोई भी व्यवधान ऊर्जा की कीमतों को बढ़ा सकता है।