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- Manoj Joshi’s Column It Is Our Responsibility To Deal With Pakistani Terrorism
3 घंटे पहले
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मनोज जोशी विदेशी मामलों के जानकार
पिछले सप्ताह अमेरिकी विदेश मंत्री ने ऐलान किया कि अमेरिका ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) को एक नामित विदेशी आतंकवादी संगठन (एफटीओ) और विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी (एसडीजीटी) की फेहरिस्त में शामिल करेगा।
उन्होंने कहा कि टीआरएफ लश्कर-ए-तैयबा का ही छद्म संगठन था, जिसने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की जिम्मेदारी ली है। जब अमेरिका किसी संगठन को एफटीओ और एसडीजीटी के रूप में नामित करता है, तो कई चीजें होती हैं।
अव्वल तो यह कि अमेरिका में उसकी सभी वित्तीय संपत्तियों को फ्रीज कर दिया जाता है। दूसरे, ऐसे किसी संगठन को सामग्री या संसाधन मुहैया कराना एक संघीय अपराध बन जाता है। ऐसे एफटीओ द्वारा कोई भी धन एकत्र किया जाता है तो बैंकों को इसकी जानकारी देनी पड़ती है। वहीं किसी संगठन को एसडीजीटी के तौर पर नामित करने पर भी इससे मिलते-जुलते ही प्रतिबंध लगाए जाते हैं।
जैसा कि हम देख सकते हैं कि ये कोई बहुत प्रभावशाली कार्रवाई नहीं है। लश्कर-ए-तैयबा को 2001 में एफटीओ और 2005 में एसडीजीटी घोषित किया गया था। उसे पैसा और सहायता देने वालों के नाम भी घोषित किए गए।
इससे भले ही लश्कर के विदेशों में धन एकत्रित करने पर रोक लगी होगी, लेकिन इस कार्रवाई का असर सीमित ही रहा, क्योंकि इस संगठन को पाकिस्तानी सेना से पैसा और सहयोग मिल रहा है। यह भी नहीं भूलना चाहिए कि जैसे ही लश्कर को एफटीओ घोषित किया गया, इसने अपना नाम बदल कर जमात-उद-दावा (जेयूडी) रख लिया। इस आतंकी संगठन ने दावा किया कि वह अब सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर से संचालित हो रहा है।
लश्कर के एसडीजीटी के तौर पर नामित होने का सबसे बड़ा असर संभवत: फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (एफएटीएफ) की प्रक्रिया थी, जिसके जरिए 2018 में पाकिस्तान पर दबाव बनाया गया था। इसी ने पाकिस्तान को हाफिज मुहम्मद सईद, जकीउर रहमान लखवी और साजिद मीर को आतंकवाद के वित्तपोषण के आरोप में दोषी ठहराने के लिए मजबूर किया। सईद को 33 साल, लखवी को 5 साल और मीर को 15 साल के कारावास की सजा सुनाई गई। हालांकि, हम यह नहीं जानते कि ये लोग सच में ही जेल में हैं या पाकिस्तानी सेना के किसी ठिकाने पर रह रहे हैं।
2008 में संयुक्त राष्ट्र ने लश्कर पर अपनी “1267 समिति’ के तहत प्रतिबंध लगाए थे। जेयूडी को भी इस सूची में यह कहते हुए शामिल कर लिया कि यह भी लश्कर का ही एक मोर्चा था। पाकिस्तान को भी जेयूडी पर प्रतिबंध लगाने के लिए मजबूर किया गया। लेकिन जेयूडी/लश्कर फिर तहरीक-ए-तहफुज किबला अवल जैसे दूसरे नाम से काम करते रहे।
2014 में इसे भी एफटीओ सूची में डाल दिया गया। पुलवामा के बाद पाकिस्तान ने जेयूडी और इसकी चैरिटी शाखा फलाह-ए-इंसानियत ट्रस्ट पर पुन: प्रतिबंध लगा दिया, लेकिन संगठन ने फिर अपना नाम बदल लिया। अनुच्छेद 370 के हटने के बाद यह टीआरएफ के नाम से फिर उभर आया और कश्मीर में कई हमलों की जिम्मेदारी ली।
अमेरिका की कार्रवाई उपयोगी है और एक वैश्विक तौर पर लश्कर को अलग-थलग करने में मदद भी करती है। लेकिन वास्तविकता के धरातल पर आतंकी संगठन के लिए इसके परिणाम सीमित ही हैं। इसीलिए यह थोड़ा अजीब लगता है कि भारत में मीडिया और सरकार इस कार्रवाई को बड़ी सफलता बताते हुए इसे अपनी एक ‘प्रमुख कूटनीतिक जीत’ बता रहे हैं। विदेश मंत्री एस.जयशंकर ने इसे आतंकवाद के खिलाफ सहयोग का ‘दृढ़ संकल्प’ बताया है। जबकि अमेरिका की कार्रवाई काफी सामान्य थी और 2001 से लश्कर को नियंत्रित करने की उनकी नीति के अनुरूप थी।
टीआरएफ के नामित होने पर पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने कहा कि पाक ने पहले ही आतंकवादी संगठनों को ‘प्रभावी और समग्र रूप से नष्ट’ कर दिया है। पाकिस्तान ने पहलगाम हमले की निष्पक्ष जांच की मांग भी की थी। हमें याद रखना चाहिए कि अमेरिका का किसी भी समूह को एफटीओ या एसडीजीटी के तौर पर नामित करना उसके खुद के हितों पर निर्भर करता है।
लश्कर को नामित करने का उसका निर्णय 9/11 हमले पर उसकी अपनी प्रतिक्रिया से अधिक प्रेरित था। लश्कर 1990 के दशक के मध्य से भारत में सक्रिय हो चुका था, लेकिन नामांकन 2001 में जाकर किया गया। जैश-ए-मोहम्मद को भी दिसंबर 2001 में प्रतिबंधित किया गया था।
आतंकवादी संगठन टीआरएफ पर अमेरिका का निर्णय भारत को खुश करने की इच्छा से प्रेरित लग रहा है, क्योंकि पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के बावजूद अमेरिका और पाकिस्तान के बीच बढ़ते गठजोड़ से भारत नाराज था। (ये लेखक के अपने विचार हैं)