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- Minhaj Merchant’s Column Bihar Results Will Also Tell The Direction Of Bengal And Assam
3 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
इस साल के बिहार विधानसभा चुनावों के नतीजे अगले साल पश्चिम बंगाल और असम में होने जा रहे चुनावों के लिए हवा का रुख बताने वाले होंगे। इन तीनों ही राज्यों में अवैध घुसपैठ एक प्रमुख मुद्दा है। तीनों ही राज्यों में अवैध मतदाता हैं, जिनमें से ज्यादातर बांग्लादेश और नेपाल से हैं। कुछ म्यांमार से भी हैं।
चुनाव आयोग द्वारा बिहार में कराए जा रहे विशेष गहन पुनरीक्षण में 5% से ज्यादा अवैध मतदाता सामने आए हैं। इनमें से ज्यादातर या तो अब मृत हैं या फर्जी वोटर हैं या स्थायी रूप से राज्य छोड़कर जा चुके हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी हैं, जो भारतीय नागरिक नहीं हैं और इस कारण वोट देने के पात्र नहीं हैं। सवाल उठता है उन्हें आधार कार्ड, निवास प्रमाण पत्र और राशन कार्ड कैसे मिले? जाहिर है अवैध तरीके से। बिहार में ऐसे बिचौलियों की कमी नहीं है, जो पैसा लेकर किसी भी दस्तावेज की जालसाजी कर सकते हैं।
ये फर्जी वोटर बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजों को कितना प्रभावित कर सकते हैं? बिहार में 7.74 करोड़ पात्र मतदाता हैं। मान लें कि अगर इनमें से 1% भी फर्जी हुए तो लगभग 8 लाख मतदाता होंगे। अगर वे प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में केंद्रित हों और लामबंद होकर मतदान करें, तो कड़े मुकाबले वाली सीटों पर प्रभाव डाल सकते हैं। ध्यान रहे कि बिहार का चुनाव विपक्षी इंडिया गठबंधन के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में मिली करारी हार के बाद अब कांग्रेस और राजद को चुनावी रुख मोड़ने की जरूरत है।
ऐसे में राजद नेता तेजस्वी यादव को लोजपा के चिराग पासवान से अप्रत्याशित मदद मिल सकती है। चिराग एनडीए का हिस्सा हैं। वे बिहार की सक्रिय राजनीति में वापसी करने और अपने पिता रामविलास पासवान की विरासत को फिर से खड़ा करने में गहरी दिलचस्पी दिखा रहे हैं। केंद्र में मंत्री होने के नाते चिराग अभी एक बड़े तालाब की छोटी मछली हैं। बिहार में वे छोटे तालाब की बड़ी मछली साबित हो सकते हैं!
भाजपा और जदयू जानते हैं कि यह नीतीश का मुख्यमंत्री के रूप में आखिरी कार्यकाल हो सकता है। तब अगला मुख्यमंत्री कौन होगा? भाजपा के मन में कई उम्मीदवार हैं। वह 2030 में या शायद उससे पहले ही नीतीश के सेवानिवृत्त होने का इंतजार कर रही है। वह चिराग की रणनीति भी जानती है, लेकिन अपने पत्ते नहीं खोल रही है।
फिलहाल उसे लोजपा जैसी छोटी पार्टी की जरूरत है, जो चुनाव में भाजपा और जदयू के आंकड़ों में लगभग 5% वोटों का इजाफा करे और कड़े मुकाबलों में जीत दिलाए। 2020 में लोजपा ने 5.66% वोट-शेयर हासिल किया था। हालांकि उसने 137 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ एक ही सीट जीती, लेकिन वह नौ सीटों पर दूसरे स्थान पर रही थी।
पटना और बिहार के अन्य हिस्सों में हत्याओं की बढ़ती घटनाओं ने तेजस्वी यादव का हौसला बढ़ा दिया है। राजद और कांग्रेस को पता है कि उनके पास एनडीए के जातीय गणित को बिगाड़ने का छोटा-सा ही मौका है, लेकिन बिगड़ती कानून-व्यवस्था पर हमला करके उन्होंने एनडीए को बैकफुट पर ला दिया है।
नीतीश द्वारा 35% सरकारी नौकरियों को महिलाओं के लिए आरक्षित करने का वादा एक महत्वपूर्ण लैंगिक-जनसांख्यिकी को एनडीए के पक्ष में झुका सकता है। 1 अगस्त से घरेलू उपभोक्ताओं को 125 यूनिट मुफ्त बिजली देने के नीतीश के वादे के बाद मोदी ने भी निजी क्षेत्र में पहली नौकरी करने वाले युवाओं को 15,000 रुपए की एकमुश्त राशि देने की पेशकश की है।
ममता बनर्जी और हिमंत बिस्वा सरमा बिहार में हो रही घटनाओं पर पैनी नजर रखे हुए हैं। बंगाल में घुसपैठ की समस्या बिहार से ज्यादा गंभीर है। असम की भी यही स्थिति है। अगर बंगाल में भी पात्र मतदाताओं का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जाता है तो हिंसा भड़कना तय है। इससे ममता को मुख्यमंत्री बनने में मदद भी मिल सकती है या उनका नुकसान भी हो सकता है।
पिछले एक साल में हुए घोटालों की बाढ़ ने उदारवादी हिंदुओं को तृणमूल के खिलाफ किया है। लेकिन ममता का मुस्लिम वोट बैंक बरकरार है। अगर बंगाल में मतदाता पुनरीक्षण का प्रयास किया जाता है, तो मुस्लिम वोट तृणमूल के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं।
असम में शायद मुस्लिम वोट या अवैध घुसपैठिए अपने दम पर कांग्रेस को जिताने में मददगार साबित नहीं होंगे। हाल ही में राहुल गांधी असम पहुंचे थे। वहां उनके भाषण के बाद हिंसा भड़क उठी। इस पर सरमा ने राहुल पर राज्य में ध्रुवीकरण करने का आरोप लगाया। बंगाल और असम में चुनाव प्रचार शुरू होने से पहले बिहार के नतीजे आ चुके होंगे और वे बताएंगे कि हवा किस दिशा में बह रही है।
पश्चिम बंगाल में घुसपैठ की समस्या बिहार से कहीं ज्यादा गंभीर है। असम की भी कमोबेश यही स्थिति है। अगर बिहार की तरह पश्चिम बंगाल में भी पात्र मतदाताओं का विशेष गहन पुनरीक्षण किया जाता है तो हिंसा भड़कना तय है। (ये लेखक के अपने विचार हैं)