4 घंटे पहले
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मिन्हाज मर्चेंट, लेखक, प्रकाशक और सम्पादक
भारत को लेकर पाकिस्तान का जुनून बंटवारे के बाद ही शुरू हो गया था। 11 अगस्त, 1947 को पाकिस्तान की संविधान सभा में अपने अध्यक्षीय भाषण में जिन्ना ने कहा था : “विभाजन तो होना ही था। एकीकृत भारत का कोई भी विचार कभी कारगर नहीं हो सकता था, और मेरे ख्याल से वह हमें भयानक विनाश की ओर ही लेकर जाता।’
15 अप्रैल, 2025 को, यानी पहलगाम आतंकी हमले से महज सात दिन पहले, पाकिस्तान के सेना प्रमुख जनरल आसिम मुनीर ने भी इस्लामाबाद में प्रवासी पाकिस्तानियों के वार्षिक सम्मेलन में बोलते हुए कहा था : “हमारे पूर्वजों ने सोचा था कि हम जीवन के हर पहलू में हिंदुओं से अलग हैं।
हमारा धर्म अलग है। हमारे रीति-रिवाज अलग हैं। हमारी परंपराएं अलग हैं। हमारे विचार अलग हैं। हमारी महत्वाकांक्षाएं अलग हैं। यही दो कौम के सिद्धांत की बुनियाद थी, कि हम दो अलग राष्ट्र हैं। कश्मीर हमारे गले की नस है। हम इसे नहीं भूलेंगे।’
इन दोनों भाषणों के बीच में 78 साल का फासला है, लेकिन इन सालों में अगर कोई एक चीज नहीं बदली है, तो वो है भारत के प्रति पाकिस्तान के रवैये में निहित गहरी मनोविकृति। वास्तव में, पाकिस्तान ने अपनी पैदाइश के समय ही अपनी सम्प्रभुता पश्चिमी मुल्कों के सामने समर्पित कर दी थी।
अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिम और सोवियत संघ के बीच शीत युद्ध के दौरान उसने खुद को साम्यवाद के खिलाफ एक क्षेत्रीय ढाल के रूप में स्थापित किया। बदले में उसे वित्तीय और सैन्य सहायता मिली और गैर-नाटो सहयोगी का दर्जा तक दे दिया गया।
इस्लामाबाद का केवल एक ही एजेंडा था : भारत के साथ बराबरी। उसे पता था कि उसकी अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में बहुत छोटी है, लेकिन पाकिस्तानी फौज के जनरलों का हमेशा से मानना रहा कि सैन्य-मामलों में वे भारत के बराबर हैं।
बांग्लादेश युद्ध ने उस खुशफहमी को भी चकनाचूर कर दिया। न केवल पाकिस्तान दो टुकड़ों में बंट गया, बल्कि पूर्वी पाकिस्तान में 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के अपमानजनक आत्मसमर्पण ने इस्लामाबाद के सैन्य-समानता के ढोंग को खत्म कर दिया। इसके बाद पाकिस्तान की सेना ने आतंकवाद को स्टेट-पॉलिसी के एक साधन के रूप में अपनाया, ताकि भारत को हजारों घाव दिए जा सकें।
अमेरिका के नेतृत्व वाला पश्चिम भी इसमें शामिल था। उसने 1979-89 के बीच अफगानिस्तान में सोवियत संघ से लड़ने के लिए पाकिस्तान के मुजाहिदीनों का इस्तेमाल किया। जब सोवियत संघ अफगानिस्तान से कूच कर गया, तो पाकिस्तान ने अपने मुजाहिदीनों को जम्मू-कश्मीर भेज दिया। इस्लामी आतंकवादी हमलों ने तब 3,00,000 से ज्यादा कश्मीरी पंडितों को उनके घर से खदेड़ दिया था।
पाकिस्तानी आतंकवादियों ने 1990 के दशक में कश्मीर घाटी को खून से लथपथ कर दिया था। अपनी मनोग्रंथि के चलते अब पाकिस्तान भारत से यह मनवाना चाहता था कि अगर वह आर्थिक या सैन्य रूप से उसके बराबर नहीं, तो कम से कम कश्मीर पर वह उससे बातचीत करने का हकदार जरूर है। जब भारत ने यह भी करने से मना कर दिया तो पाकिस्तान ने भारत को बातचीत की मेज पर लाने के लिए आतंकी हमलों का इस्तेमाल किया।
लेकिन किस बारे में बातचीत? 2019 में अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के बाद जम्मू-कश्मीर के स्टेटस पर तमाम बहसें समाप्त हो गई थीं। जैसा कि रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बार-बार कहा है, इस्लामाबाद के साथ बातचीत के लिए एकमात्र विषय पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाला कश्मीर (पीओके) है। जबकि ये पाकिस्तानी सेना के लिए वर्जित विषय थे।
उसके दो ही तात्कालिक उद्देश्य हैं : पहला, भारत के आर्थिक और भू-राजनीतिक उदय के मद्देनजर उसका नाम पाकिस्तान के साथ फिर से जोड़ना (री-हाइफनेट), इससे पहले कि वह इस्लामाबाद की पहुंच से बाहर हो जाए। भारत की अर्थव्यवस्था पहले ही पाकिस्तान की कर्ज में डूबी अर्थव्यवस्था से 11 गुना बड़ी है और पाकिस्तान की तुलना में तीन गुना तेजी से बढ़ रही है।
विश्लेषकों के अनुसार, 2035 तक भारत की जीडीपी के पाकिस्तान से 15 गुना बड़ी होने की संभावना है। इससे भारत के साथ बराबरी करने के पाकिस्तान के जुनून पर रोक लग जाएगी। पाकिस्तानी सेना का दूसरा मकसद इस विचार को बेचना है कि वह भी अंतरराष्ट्रीय संगठनों में एक सीट का हकदार है। इस्लामाबाद ने ब्रिक्स की सदस्यता के लिए आवेदन किया है, जिस पर भारत स्पष्ट रूप से वीटो लगाएगा, क्योंकि इसकी सदस्यता सर्वसम्मति पर आधारित है।
पाकिस्तानी सेना के शीर्ष अधिकारियों की पाकिस्तान के लगभग आधे व्यापारिक उद्यमों में हिस्सेदारी है। उन व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए, फौज को राजनीतिक नेतृत्व और नागरिक समाज दोनों पर अपनी सर्वोच्चता की छवि बनाए रखनी जरूरी है।
ऑपरेशन सिंदूर में भारत के हाथों मिली करारी हार ने फौज के आभामण्डल को ध्वस्त कर दिया है। और इसके बावजूद भारत को लेकर पाकिस्तान का जुनून कम नहीं हुआ है। विडंबना यह है कि जनरल मुनीर दो अलग राष्ट्रों की चाहे जितनी बात कर लें, लेकिन आज पाकिस्तान भारत जैसा ज्यादा बनना चाहता है और पाकिस्तान जैसा कम।
लेकिन अपने तमाम अरमानों के बावजूद आज पाकिस्तान आतंकवाद का वैश्विक केंद्र बनकर रह गया है। अमेरिका जैसी प्रमुख ताकतें केवल उसका इस्तेमाल करती हैं। वह पश्चिम के अधीन हो गया है और विश्व-मंच पर भारत जैसी हैसियत हासिल करने के लिए तरस रहा है।
भारत 2027 में दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। 2027 में पाकिस्तान क्या होगा? एक ऐसी इकोनॉमी, जो पहले ही आईएमएफ और विश्व बैंक से मिलने वाले कर्जों पर निर्भर हो और जिसे अमेरिका और चीन से भू-रणनीतिक आदेश मिलते हों, वो भला किस मुकाम पर होगी?
भारत जैसी हैसियत पाने के लिए तरस रहा है पाक… अपने तमाम अरमानों के बावजूद आज पाकिस्तान आतंकवाद का वैश्विक केंद्र बनकर रह गया है। अमेरिका जैसी ताकतें अपने लाभ के लिए उसका इस्तेमाल करती हैं। वह पश्चिम के अधीन हो गया है और विश्व-मंच पर भारत जैसी हैसियत पाने के लिए तरस रहा है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)