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- N. Raghuraman’s Column Clocks Can Count Seconds, Not Moments Like The Heart!
4 घंटे पहले
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एन. रघुरामन, मैनेजमेंट गुरु
मुंबई के पवई स्थित हीरानंदानी अस्पताल में सोमवार की सुबह ऑपरेशन थिएटर के बाहर तीन घंटे इंतजार करते हुए मैंने करीब सौ से ज्यादा बार अपनी कलाई घड़ी देखी होगी। मेरी पत्नी की दोनों आंखों की मोतियाबिंद की सामान्य सर्जरी के लिए मुझे बीते सात दिनों में दो अलग-अलग दिन उसे अस्पताल ले जाना पड़ा।
हालांकि इतने बड़े अस्पताल में कथित 15 मिनट की सर्जरी के पहले और बाद में विभिन्न कारणों से कई घंटे लग गए और ऐसे में अपने करीबी परिजन की देखभाल के लिए वहां मौजूद रिश्तेदार के तौर पर कोई भी बार-बार घड़ी देखने के अलावा कुछ भी नहीं कर सकता। और जब पहली आंख की सर्जरी के लिए पहले दिन पत्नी ओटी में गईं तो मैंने भी बिल्कुल ऐसा ही किया।
पहले दिन, मैंने महसूस किया कि मेरी घड़ी की मिनट वाली लंबी सुई बहुत धीरे चल रही थी। मुझे लगा कि इसे सही कराने के लिए दुकान पर ले जाना चाहिए। मुझे इस घड़ी के साथ पहले कभी भी ऐसा नहीं लगा था। या तो यह सामान्य तौर पर काम करती या बैटरी खत्म होने पर रुक जाती थी। लेकिन बीते 25 सालों में धीमे चलना तो इस घड़ी की प्रकृति नहीं रही।
पत्नी के कैथलैब डे केयर से डिस्चार्ज होने के बाद मैं अपने नियमित घड़ीसाज के पास गया, जिससे मैं बैटरी लेता हूं। और जब मैंने उससे कहा कि यह घड़ी धीमे चल रही है तो उसने मुस्कराकर मेरी ओर देखा और बोला ‘जैसे अचानक हमारा पेट खराब हो जाता है, घड़ियों में भी अचानक ऐसी समस्या हो जाती है।
सामान्य तौर पर यह मैकेनिकल समस्या नहीं होती। यह घड़ी मालिक की आंखों में मायोपिया के कारण हो जाता है।’ उसने धीरे से कहा ‘घड़ियां लोगों की तरह ही होती हैं। जैसे ही आप उनके साथ जल्दबाजी करते हो तो घड़ी में कुछ खराब हो या नहीं हो, लेकिन मुझे यकीन है कि घड़ी मालिक के साथ जरूर कुछ बुरा हुआ होता है।’
घड़ीसाज ने घड़ी को एक छोटी सफेद टेबल पर रखा, जिस पर एक ट्रे और मोटा कॉटन का सफेद कपड़ा रखा था। फिर उसने पूछा कि ‘आपने कब देखा कि यह घड़ी धीरे चल रही है?’ मैंने कहा ‘जब मैं अस्पताल में इंतजार कर रहा था।’ वह जोर से हंसा और बोला ‘अब मैं समझ गया।’ इसे एक दिन के लिए मेरे पास छोड़ो और यदि आप चाहते हो तो ये पॉकेट वॉच ले जाओ।
यह बिल्कुल सही चलती है। चूंकि इसे देखकर मुझे मेरे नानाजी की पॉकेट वॉच याद आई तो मैंने इसे रख लिया। सर्जरी की बात सुनकर मेरी बेटी घर आई थी और मैंने देखा कि जब हम साथ डिनर कर रहे थे तो यह पॉकेट वॉच वास्तव में तेज चल रही थी। सच में, समय जैसे उड़ा जा रहा हो।
मैं दूसरे दिन घड़ीसाज के पास गया और उसको बोला ‘इस घड़ी में समय अनियमित चल रहा है।’ जैसे ही उसे पता चला कि बेटी के साथ डिनर करते वक्त यह अनियमित चल रही थी, तो वह शर्माते हुए हंसा और मेरी घड़ी वापस करते हुए बोला ‘अब यह सही हो गई है।
चूंकि यह लंबे समय मेरे पास रही, इसलिए अब शांत हो गई है और सही प्रकार से चल रही हैं। मैंने इसमें कुछ भी नहीं किया।’ उसने मेरे लिए चाय मंगाई और चुस्की लेते हुए बोला ‘इस बात को समझो कि समय दो तरह का होता है।
एक वह, जो गुजरता है, दूसरा जिसे आप जीते हो।’ और वह सही था। पत्नी की दूसरी आंख की सर्जरी के दौरान मेरे पास पढ़ने के लिए एक किताब थी। इस बार भले ही मैंने अपनी आदत के मुताबिक कई बार घड़ी देखी, लेकिन यह समय से ही चल रही थी।
फंडा यह है कि घड़ी सेकंड गिन सकती है, लेकिन यह हमारा दिल ही होता है, जो पलों को गिन सकता है। जब दिल डरा होता है तो लगता है कि समय गुजर ही नहीं रहा और जब यह खुश होता है तो समय पंख लगाकर उड़ जाता है।