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- N. Raghuraman’s Column Have You Ever Tried To Instill Hope In Society On Sunday?
42 मिनट पहले
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एन. रघुरामन मैनेजमेंट गुरु
जॉर्ज अपनी पहली ग्राहक को दूर से ही देख सकते थे। उन्होंने उसकी मां के हाथों से उसका हाथ खींचा और उसे लेकर अपने गैरेज की ओर दौड़ पड़े, जहां उन्होंने बीती रात को ही यह बोर्ड लगाया था- “आपके पास टूटी हुई चीजें हैं? तो उन्हें यहां ले आइए। इसके लिए कोई पैसा नहीं लिया जाएगा। बस चाय और बातें।’ आठ साल की मिया अपने टॉय-ट्रक के साथ गैरेज में पहुंची। उसमें चौथा पहिया नहीं था। उसने कहा, “क्या आप इसे ठीक कर सकते हैं?’
फिर धीमी आवाज में कहा- “डैड कहते हैं अभी तो हम नया नहीं खरीद सकते।’ जॉर्ज ने औजारों की खोजबीन की और एक घंटे बाद ट्रक फिर से चलने लगा। अब एक बोतल का ढक्कन उसका पहिया बन गया था और उसे आकर्षक बनाने के लिए उसमें एक सिल्वर डक्ट टेप भी जोड़ दी गई थी। मिया खुशी-खुशी वहां से लौट आई, लेकिन उसकी मां वहीं रही।
उन्होंने पूछा- “क्या आप एक अच्छा रेज्यूमे भी बना सकते हैं?’ तीन दिन बाद मिया शिकायत लेकर आई कि बोतल के ढक्कन वाला नया पहिया जाम हो रहा है। इस बार उसकी मां उसके साथ नहीं आई थी, क्योंकि उन्हें एक इंटरव्यू के लिए बुलावा आ गया था। महज एक हफ्ते के भीतर 79 साल के जॉर्ज के गैरेज में चहल-पहल होने लगी थी। एक विधवा महिला एक टूटी हुई घड़ी ले आई।
एक किशोर फटा हुआ बैग ले आया। सेवानिवृत्त शिक्षक अलग-अलग लोगों के रेज्यूमे की प्रूफरीडिंग कर रहे थे। एक महिला बैग सिल रही थीं, जिन्होंने अतीत में यह काम किया था।अमेरिका के मिनेसोटा राज्य स्थित मेपल ग्रोव नामक इस कस्बे में कई लोगों को लगा कि जॉर्ज का दिमाग खराब हो गया है। वे एक-दूसरे से कहते कि भला कौन मुफ्त में चीजों की मरम्मत करता है? लेकिन जॉर्ज के पास इसकी एक वजह थी। उनकी दिवंगत पत्नी रूथ ने अपना जीवन जरूरतमंदों के कोट, घड़ियां आदि ठीक करने में बिताया था और वो लोगों को दिलासा भी देती थीं।
वे कहती थीं कि “चीजों को बर्बाद करना एक आदत है और दयालुता इलाज है।’ फिर शिकायत आई! “यह गैर-लाइसेंसी कारोबार है’, एक इंस्पेक्टर ने चेतावनी देते हुए कहा। मेयर ने जॉर्ज को गैरेज बंद करने का आदेश दिया। अगली सुबह कस्बे के कोई 40 लोग जॉर्ज के लॉन में विरोध के बैनर और टूटी-फूटी चीजें लिए खड़े थे- “चीजों ही नहीं, कानून की भी मरम्मत करो।’
एक बैनर पर लिखा था- “क्या दयालुता गैरकानूनी है?’ जनता के दबाव में मेयर ने नरमी दिखाई और जॉर्ज को पुराने फायर हाउस में कुछ जगह दी। वालंटियर्स ने उसे पीले रंग से रंग दिया और उसे “रूथ्स हब’ नाम दिया। लोग वहां सिर्फ अपनी चीजें ठीक करवाने ही नहीं, बल्कि दूसरों से जुड़ने भी आते थे। प्लम्बर मरम्मत सिखाते थे तो किशोर सिलाई की कला सीखते थे।
एक बेकर ने माइक्रोवेव की मरम्मत के ऐवज में कुछ मफिन्स दिए। शहर का कचरा 30% कम हो गया।आठ साल बाद मिया का एक पत्र आया, जो अब 16 साल की है और एक रोबोटिक्स लैब में इंटर्नशिप कर रही है। पत्र में लिखा था- “आपने मुझे टूटी हुई चीजों में भी मूल्य देखना सिखाया।
मैं सौर ऊर्जा से चलने वाला एक कृत्रिम हाथ बनाने की कोशिश कर रही हूं…’ और उस पत्र में एक फुटनोट भी था- “मेरा ट्रक अभी तक चल रहा है।’ आज कम से कम 12 कस्बों में इस तरह के “फिक्स-इट हब्स’ हैं। और वे कोई पैसा नहीं लेते।मुझे यह कहानी इसलिए याद आई, क्योंकि मुंबई की सातों झीलों में पानी के भंडार पर मेरे एक दोस्त ने मुझसे बात करते हुए कहा था, “हमारे पास पहले ही 90% पानी का भंडार है और यकीन मानिए, हमारे समाज के कुछ अच्छे लोगों की वजह से मुंबई में सालों-साल पीने के पानी की कमी नहीं होती।’
इससे मुझे हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री के जाने-माने चेहरे केवी साइमन का ख्याल आया, जो साल 2013 तक अमेरिकन होटल एंड मोटल एसोसिएशन (AHAMA) के साथ काम करते थे। जॉर्ज की तरह साइमन भी अपनी कंपनी के लिए छह दिन काम करने के बाद रविवार का दिन चर्च के काम के लिए समर्पित करते थे। मैं उन्हें 30 सालों से जानता हूं और वे रविवार को कभी फ्री नहीं होते, क्योंकि उस दिन को उन्होंने स्रष्टा और आस्था से जुड़े कार्यों के लिए समर्पित कर दिया था।
फंडा यह है कि अगर हम अपना रविवार कुछ ऐसा करने में बिताएं, जिससे हमारे अंदर और हमारे आसपास उम्मीदें जगें, तो हमें अलग तरह की संतुष्टि मिलेगी।