3 घंटे पहले
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नवनीत गुर्जर
अटल जी कहते थे- राजनीति एक बियाबान है। यहां कुछ भी निश्चित नहीं। ठहरा हुआ नहीं। निश्चिंत भी नहीं। उपराष्ट्रपति रहते शायद जगदीप धनखड़ ने भी यही सोचा होगा। तड़पना, गुम हुए लम्हों की खातिर। कई अनजान वादों से गुजरना। अधूरी, नामुकम्मिल कोशिशों के दर्द। इन सबके साथ जीना टुकड़े-टुकड़े लगता है। यही सोचकर वे पद छोड़कर चलते बने।
हालांकि आधिकारिक कारण तो उनका स्वास्थ्य ही है लेकिन असल वजह क्या है ये तो वही जानते होंगे। और कोई नहीं। हो सकता है और कोई कभी कुछ जान भी नहीं पाएगा। बहरहाल, धनखड़ साहब की जगह अब कौन लेगा, इसकी कवायद शुरू हो चुकी है।
कयास लगाए जा रहे हैं। इतना तय माना जा रहा है कि जितने भी नामों की अटकलें लगाई जा रही हैं, नाम उनसे कोई अलग ही होगा। एकदम अलग। कोई कहता है पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति की राह गढ़ने के लिए यह सब हो रहा है।
कोई कहता है उम्र का कोई मामला है। कोई यह भी कहता है कि उस दिन दोपहर डेढ़ से साढ़े चार बजे के बीच कुछ ऐसा हुआ है कि धनखड़ साहब को जाना पड़ा। वरना मानसून सत्र के पहले ही दिन यह सब क्यों कर होता भला?
दूसरी तरफ जो विपक्ष कभी धनखड़ साहब को सत्ता पक्ष का हामी बताकर उनके खिलाफ महाभियोग लाने की कोशिश कर चुका है, वही विपक्ष अब उन्हीं धनखड़ के लिए आंसू बहाता दिखाई दे रहा है। राजनीति इसलिए भी अनिश्चित कही जाती है। यहां कोई मित्र या दुश्मन स्थायी नहीं होता। मौके की नजाकत देखकर मित्र या दुश्मन बनाए जाते हैं।
इधर बिहार की मतदाता सूची के पुनरीक्षण और ऑपरेशन सिंदूर को लेकर विपक्ष संसद नहीं चलने दे रहा है। तीन दिन हो चुके, कोई कामकाज नहीं हो सका। सरकार ऑपरेशन सिंदूर पर पूर्ण चर्चा के लिए तैयार है लेकिन फिर भी बात नहीं बन पा रही है।
मतदाता सूची का मामला तो वैसे भी चुनाव आयोग का है। चुनाव आयोग कहने को एक तरह की स्वतंत्र संस्था है। जवाब भी उधर से ही आना चाहिए। हो सकता आए भी। फिलहाल लोकसभा और राज्यसभा की तर्ज पर बिहार विधानसभा में भी खूब हंगामा हो रहा है।
यहां तो संसद से कई कदम आगे जाकर धक्का-मुक्की, कुर्सी उछालने से लेकर मारपीट तक हो रही है। कोई स्पीकर या मार्शल से भी डर नहीं रहा है। सब के सब एक-दूसरे पर झपटने को उतावले हैं। मुद्दा वही मतदाता सूची और बिहार की कानून-व्यवस्था है। विपक्ष किसी की एक नहीं मान रहा है और सत्ता पक्ष के पास कोई जवाब नहीं है।
उधर ट्रम्प महोदय को जाने क्या हो गया है। वे विमान पर विमान गिराए जा रहे हैं। कभी कहते हैं समझौता मैंने करवाया, वो दोनों तो परमाणु हमले पर आमादा थे, मैंने रोका… और भी बहुत कुछ। जबकि भारत कई बार कह चुका है कि युद्ध विराम पाकिस्तान के आग्रह पर हुआ है। इसमें किसी तीसरे पक्ष का कोई योगदान नहीं है। कोई लेना-देना नहीं है। खैर, बाकी देश पानी-पानी हो रहा है।
त्योहारी सीजन के लिए पेड़, पौधे, फसलें नहा-धोकर तैयार खड़े हैं। हरियाली हर तरफ है। हरियाली के इस दौर में यही पानी कहीं-कहीं बर्बादी भी ला रहा है। तबाही भी मचा रहा है। कोई नदी-नालों में बह रहा है। कोई सेल्फी लेते हुए फिसल रहा है। गिर रहा है। कहीं बस्तियां जलमग्न हो रही हैं। उनका सबकुछ बह रहा है। बहता जा रहा है।
सरकारें हेलीकॉप्टर से खाने के पैकेट गिराने के सिवाय कुछ कर नहीं पा रही हैं। बिहार- जहां विधानसभा में मतदाता सूची को लेकर झगड़े चल रहे हैं- वहां वर्षों से बारिश और बाढ़ के सीजन में हजारों लोग घर छोड़कर सड़क किनारे रातें गुजारने पर मजबूर हैं। उनकी कोई चिंता नहीं करता। न बड़े-बड़े वादे करने वाला सत्ता पक्ष और न ही व्यवस्था सुधारने या नया बिहार गढ़ने के वादे करते रहने वाला विपक्ष। लोग वहीं हैं सड़क के किनारे।
कोई व्यवस्था नहीं। कोई सुधार नहीं। खाने के पैकेट के बदले मुरमुरे गिराकर कर्तव्य की इतिश्री समझ ली जाती है। वर्षों सरकार में रहकर भी आप अगर लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान की सुविधा मुहैया होने लायक स्थिति पैदा नहीं कर पाए तो आखिर आपने किया क्या और आपकी वर्षों की सत्ता से लोगों ने पाया क्या?
मतदाता सूची के झगड़े से पहले इस स्थिति का समाधान होना चाहिए। अगर यह मूलभूत सुधार ही नहीं हो पाए तो इस चुनाव, ऐसी सरकारों और ऐसी सत्ताओं का आखिर क्या मतलब? क्या उपयोग?
वर्षों सरकार में रहकर भी आखिर आपने किया क्या… आप अगर लोगों को रोटी, कपड़ा, मकान की सुविधा मुहैया होने लायक स्थिति पैदा नहीं कर पाए तो आपने किया क्या और आपकी सत्ता से लोगों ने पाया क्या? मतदाता सूची के झगड़े से पहले इस स्थिति का समाधान होना चाहिए।