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Saturday, 28 June 2025
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Neerja Chaudhary’s column – Some good faces have emerged in the opposition parties as well | नीरजा चौधरी का कॉलम: विपक्षी दलों में भी कुछ अच्छे चेहरे उभरकर सामने आए हैं

Neerja Chaudhary’s column – Some good faces have emerged in the opposition parties as well | नीरजा चौधरी का कॉलम: विपक्षी दलों में भी कुछ अच्छे चेहरे उभरकर सामने आए हैं

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9 घंटे पहले

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नीरजा चौधरी वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार

पहलगाम के बाद जो हालात बने, उन्होंने भारत में विभिन्न दलों में उभर रहे नए नेतृत्व को सामने ला दिया है। ऑपरेशन सिंदूर पर ‘ग्लोबल-आउटरीच’ के लिए सात प्रतिनिधिमंडलों का नेतृत्व करने वाले या इसका हिस्सा रहे अधिकांश लोग काफी समय से राजनीति के क्षेत्र में हैं।

वे अपनी-अपनी पार्टियों में नेतृत्व की दूसरी या तीसरी पंक्ति के नेता रहे हैं। एआईएमआईएम सांसद असदुद्दीन ओवैसी जैसे कुछ ने तो अपनी पार्टियों का नेतृत्व भी किया है। लेकिन पिछले हफ्तेभर में जिस तरह से उन्होंने विश्व की राजधानियों में भारत की पोजिशन को स्पष्ट शब्दों में सामने रखा, उससे देश ने अचानक उन्हें नई नजर से देखा है। इसने भारत की संसद में मौजूद प्रतिभा को भी रेखांकित किया है।

देश ने इन नेताओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते और एक लय में आगे बढ़ते देखा, जबकि संसद में वे केवल आपस में लड़ते दिखलाई देते थे। इस आउटरीच-कार्यक्रम की अन्य उपलब्धियां चाहे जो हों, लेकिन इतना तो तय है कि इसने भारत में एक नए राजनीतिक नेतृत्व को उभरता हुआ दिखाया है।

इन विपक्षी नेताओं ने विदेश में भारतीय राष्ट्रवाद को अलग-अलग तरीकों से व्यक्त किया। ओवैसी- जो भारत के अल्पसंख्यकों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाने के लिए जाने जाते हैं- ने पाकिस्तान को कड़ी भाषा में आड़े हाथों लिया।

यहां तक ​​कि उन्होंने पाकिस्तान द्वारा जारी की गई फर्जी तस्वीरों का जिक्र करते हुए कहा कि नकल के लिए भी अकल चाहिए! प्रियंका चतुर्वेदी (शिवसेना यूबीटी) ने भारत को न केवल बुद्ध और गांधी, बल्कि कृष्ण की भूमि भी बताया, जिन्होंने पांडवों से आग्रह किया था कि धर्म की रक्षा के लिए आवश्यक हो तो युद्ध करने से न हिचकिचाएं।

कांग्रेस नेता आनंद शर्मा ने हमलों का भारत द्वारा करारा जवाब देने के बारे में बात की। मनीष तिवारी ने पाकिस्तान को चेताया कि अगर उसने आतंकवाद को प्रायोजित करना बंद नहीं किया, तो भविष्य में भारत की प्रतिक्रिया बहुत तीखी होगी।

इस तरह की कवायद से स्वाभाविक ही सरकार को फायदा होता है, क्योंकि पूरा राजनीतिक वर्ग पहलगाम के बाद सरकार की पोजिशन को भारत की पोजिशन मानकर उसका बचाव कर रहा था। यदि सर्वदलीय समूहों ने 33 देशों (और वहां बसे भारतीय प्रवासियों) तक कोई एक शक्तिशाली संदेश पहुंचाया तो वो यह था कि आतंकवाद और पाकिस्तान के मुद्दे पर भारत एकजुट है, जबकि पाकिस्तान आतंकवादी हमले के माध्यम से देश में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाने की उम्मीद कर रहा था।

जम्मू और कश्मीर भी शेष भारत के साथ मजबूती से खड़ा रहा। विपक्ष को भी इस कवायद से फायदा हुआ है, क्योंकि उसके नेता सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं की तुलना में अधिक उभरकर सामने आए हैं- चाहे वे कांग्रेस से डॉ. शशि थरूर, सलमान खुर्शीद, मनीष तिवारी, आनंद शर्मा हों। या अन्य दलों से असदुद्दीन ओवैसी, सुप्रिया सुले या कनिमोझी।

जहां तक ​​कांग्रेस नेताओं का सवाल है, एक और निहित संदेश सामने आया कि सिर्फ गांधी परिवार ही कांग्रेस का नेतृत्व नहीं कर सकता। भारत की सबसे पुरानी पार्टी में अभी भी प्रतिभाओं का खजाना है, उसके पास अनुभवी नेता हैं, जो जटिल मुद्दों को समझने और नेतृत्व देने में सक्षम हैं।

यह देखना बाकी है कि क्या सरकार ऐसे और कूटनीतिक प्रयासों में विपक्षी नेताओं का इस्तेमाल करना जारी रखेगी। हालांकि अधिकांश देशों ने पहलगाम आतंकवाद की निंदा की, लेकिन शायद ही कोई देश पाकिस्तान के खिलाफ खुलकर भारत के साथ खड़ा हुआ।

भारत का सदाबहार मित्र रूस भी दोनों तरफ से खेलता हुआ नजर आया। लेकिन कुछ देशों के साथ मुद्दों को सुलझाने के लिए ट्रैक-टू प्रयासों में भारत की अनुभवी और मुखर आवाजों का उपयोग करने की गुंजाइश आगे भी बन सकती है, क्योंकि विपक्षी नेताओं ने दिखाया है कि अगर उन्हें ऐसी भूमिका निभाने के लिए कहा गया तो वे पीछे नहीं रहेंगे।

पूर्व विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद (कांग्रेस) ने तो एक कदम आगे बढ़कर अनुच्छेद 370 को हटाने तक का समर्थन किया। उन्होंने कहा अनुच्छेद 370 से यह धारणा बनती थी कि कश्मीर अलग है। इससे उनकी अपनी पार्टी में नाराजगी पैदा हो गई, जिसने इस मुद्दे पर अस्पष्ट रुख अपनाया है।

डॉ. शशि थरूर तो सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के स्टार के रूप में उभरे। जहां उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर का समर्थन करके और आतंकवाद के प्रति भारत की प्रतिक्रिया के इस न्यू-नॉर्मल की सराहना करके खूब वाहवाही बटोरी, लेकिन उनकी पार्टी इससे नाराज है और अब उनके राजनीतिक भविष्य के बारे में सवाल पूछे जाने लगे हैं।

देश ने विभिन्न विपक्षी दलों के इन नेताओं को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करते और एक लय में आगे बढ़ते देखा, जबकि संसद में वे केवल आपस में लड़ते दिखलाई देते थे। एक नया राजनीतिक नेतृत्व उभरता नजर आया है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं।)

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Anuragbagde69@gmail.com

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