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Tuesday, 1 July 2025
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Neerja Chaudhary’s column – The stage has been set for the upcoming assembly elections | नीरजा चौधरी का कॉलम: आगामी विधानसभा चुनावों के लिए बिसात बिछ चुकी है

Neerja Chaudhary’s column – The stage has been set for the upcoming assembly elections | नीरजा चौधरी का कॉलम: आगामी विधानसभा चुनावों के लिए बिसात बिछ चुकी है

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15 मिनट पहले

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नीरजा चौधरी वरिष्ठ राजनीतिक टिप्पणीकार

सियासी हलचलों पर पैनी नजर रखने वाले एक डॉक्टर ने मुझसे पूछा कि ‘गुजरात उपचुनाव में ‘आप’ की जीत को आप कैसे देखती हैं?’ वे उलझन में थे। 2022 में यह सीट ‘आप’ ने जीती थी, लेकिन विधायक भूपेंद्र भयानी भाजपा में शामिल हो गए। गुजरात में 2027 में चुनाव है और भाजपा कतई नहीं चाहेगी कि यहां उसकी जमीन खिसके।

भले ही ‘आप’ ने उपचुनाव जीता हो, लेकिन दिल्ली हारने के बाद से पार्टी के बुरे दिन चल रहे हैं। अरविंद केजरीवाल दिल्ली के बजाय पंजाब में अधिक देखे जा रहे हैं। ‘आप’ अब खुद को इंडिया गठबंधन से दूर कर रही है और खुलेआम कांग्रेस की आलोचना करती है।

इस रणनीति से पार्टी सम्भवत: दिखाना चाहती है कि गुजरात जैसे राज्यों में अब भाजपा के सामने प्रमुख दावेदार कांग्रेस नहीं, बल्कि वह है। 2022 के चुनाव में भी उसने कांग्रेस को काफी नुकसान पहुंचाया, जिसके कारण भाजपा 156 सीटें जीतने में सफल रही। जबकि 2017 में कांग्रेस सरकार बनाने के करीब पहुंच गई थी।

अगर भाजपा ‘आप’ को थोड़ा उभरने देती है तो यह उसके लिए फायदे का सौदा होगा। इससे 2027 में सत्ता-विरोधी वोट बंट जाएंगे और कांग्रेस की राह कठिन होगी। कई लोगों का मानना है कि गुजरात में भाजपा ‘आप’ को 25 सीटों पर रोक लेगी।

गुजरात कांग्रेस में प्रदेश नेतृत्व को लेकर असमंजस और स्पष्ट विचारधारा का अभाव स्थितियों को और उलझा रहा है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष शक्ति सिंह गोहिल उपचुनाव की दो सीटों पर हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे चुके हैं। इन सीटों में से विसावदर ‘आप’ ने जीती, जबकि कडी पर भाजपा ने कब्जा बरकरार रखा है।

महज दो सीटों पर उपचुनाव की हार पर गोहिल का इस्तीफा देना थोड़ा चौंकाता है। पार्टी इस असमंजस में भी है कि वह कौन-सी विचारधारा पर टिके। परंपरागत तरीके से मध्यमार्गी रहे या राहुल के नेतृत्व में अपनाए जा रहे धुर-वामपंथ का दामन पकड़ा जाए।

सामान्य तौर पर उपचुनाव के परिणाम कोई सही तस्वीर नहीं दिखाते और लगभग सत्ताधारी दल के पक्ष में ही जाते हैं। लेकिन कुछ ऐसे उपचुनाव भी रहे हैं, जिन्होंने राजनीति की दिशा बदल दी। जैसे विश्वनाथ प्रताप सिंह ने 1988 में इलाहाबाद सीट से कांग्रेस के खिलाफ जीत दर्ज की और 1989 में प्रधानमंत्री बन गए।

उन्होंने राजीव गांधी को कुर्सी से हटाया था। दूसरा चुनाव खुद राजीव गांधी का था। वे संजय गांधी की मृत्यु के बाद 1981 में अमेठी से लड़े थे। चुनाव में राजीव की उम्मीदवारी लगभग इस बात की घोषणा थी कि वे अब इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी बनने वाले हैं। और ऐसा ही हुआ, वे 1984 में प्रधानमंत्री बने।

गुजरात की विसावदर और कडी, पंजाब की लुधियाना पश्चिम, बंगाल की कालीगंज और केरल की नीलांबुर सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम इशारा करते हैं कि इन राज्यों में सियासी हवा किस ओर बह रही है। बंगाल और केरल में चुनाव अगले वर्ष और पंजाब व गुजरात में 2027 में होने वाले हैं। ममता बनर्जी ने कालीगंज सीट 50 हजार वोटों के अंतर से दोबारा जीतकर अपनी मजबूत पकड़ दिखा दी है। भाजपा में भी कई नेताओं का मानना है कि वह 2026 के चुनावों में अपनी सत्ता बरकरार रख सकती हैं।

पंजाब में लुधियाना पश्चिम सीट पर जीत बरकरार रखकर ‘आप’ ने भी एक तीर से कई निशाने साधे है। इसने मुख्यमंत्री के तौर पर भगवंत मान की ताकत और बढ़ाई है, दूसरी ओर राज्य में मुख्य प्रतिद्वंद्वी मानी जा रही कांग्रेस को भी तगड़ा झटका दिया है। ‘आप’ प्रत्याशी और राज्यसभा सांसद संजीव अरोड़ा के जीतने से उच्च सदन में एक सीट रिक्त हो गई है।

इसके लिए केजरीवाल संभावित नाम माने जा रहे थे, लेकिन उन्होंने स्वयं राज्यसभा जाने से इनकार कर दिया है। अब मनीष सिसोदिया या पंजाब के किसी अन्य नेता का चयन राज्यसभा के लिए किया जा सकता है।

भाजपा भी चाहेगी कि पंजाब में कांग्रेस के बजाय ‘आप’ की सरकार चलती रहे। केरल के अलावा पंजाब ही दूसरा वो राज्य है, जहां जनमानस कांग्रेस की ओर दिख रहा है। कांग्रेस ने वहां 2024 के लोकसभा चुनाव में 13 में से 7 सीटें जीती थीं।

केरल की नीलांबुर सीट पर नजदीकी लड़ाई में वाम मोर्चे से सीट हथियाने के बाद कांग्रेस को लग रहा है कि शशि थरूर का मुद्दा अब उसके लिए संभवत: परेशानी नहीं बनेगा। थरूर ने पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं किया था।

प्रधानमंत्री से थरूर की मुलाकात के बाद अटकलें लगाई गई थीं कि मंत्रिमंडल फेरबदल के तहत विदेश मंत्री जयशंकर के स्थान पर थरूर को लाया जा सकता है, अलबत्ता ऐसा होने की सम्भावनाएं बहुत क्षीण हैं।गुजरात, पंजाब, पश्चिम बंगाल और केरल में हुए उपचुनावों के परिणाम इशारा करते हैं कि इन राज्यों में सियासी हवा किस ओर बह रही है। बंगाल और केरल में चुनाव अगले वर्ष और पंजाब व गुजरात में 2027 में होने वाले हैं। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)

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