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Monday, 30 June 2025
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Prof. Chetan Singh Solanki’s column – Let’s plant trees this monsoon, and do something extra too | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: आइए, इस मानसून में पेड़ लगाएं, और कुछ अतिरिक्त भी करें

Prof. Chetan Singh Solanki’s column – Let’s plant trees this monsoon, and do something extra too | प्रो. चेतन सिंह सोलंकी का कॉलम: आइए, इस मानसून में पेड़ लगाएं, और कुछ अतिरिक्त भी करें

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4 घंटे पहले

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प्रो. चेतन सिंह सोलंकी आईआईटी बॉम्बे में प्रोफेसर

हर साल मानसून के आते ही, लाखों नेक इरादे वाले नागरिक पौधरोपण अभियान में हिस्सा लेते हैं। यह एक उत्साहजनक दृश्य है : कीचड़ से सने हाथ वाले बच्चे, उत्साही स्वयंसेवक और पर्यावरण के लिए कुछ अच्छा करने की भावना। पेड़ लगाना पर्यावरण और जलवायु-कार्रवाई का लगभग पर्याय बन गया है। लेकिन क्या हमें इसके अलावा कुछ और भी करने की जरूरत है? आइए आज के संदर्भ में इसे समझने का प्रयास करते हैं!

क्या आप जानते हैं कि अपने कार्बन उत्सर्जन की भरपाई के लिए आपको हर साल कितने पेड़ लगाने होंगे? औसत वैश्विक प्रति व्यक्ति सीओ2 उत्सर्जन प्रति वर्ष लगभग 4.7 टन है। एक परिपक्व पेड़ प्रति वर्ष लगभग 20 किलोग्राम सीओ2 अवशोषित करता है। यानी सिर्फ अपने हिस्से की भरपाई के लिए आपको प्रति वर्ष 235 पेड़ लगाने होंगे। लेकिन लगाए गए पेड़ों में से 20% ही लंबे समय तक जीवित रह पाते हैं।

इसका मतलब है कि वास्तव में आपको अपने वार्षिक उत्सर्जन की भरपाई के लिए प्रतिवर्ष 1,175 पेड़ लगाने की आवश्यकता है। अब इसे 8.3 अरब लोगों की वैश्विक आबादी से गुणा करें। इसका मतलब है कि हर साल 9.7 ट्रिलियन से ज्यादा पेड़ों की जरूरत है। और इस समय पृथ्वी पर कितने पेड़ मौजूद हैं? लगभग 3 ट्रिलियन। ऐसे में सिर्फ पौधरोपण पर निर्भर रहने के लिए, हमें हर साल पृथ्वी पर मौजूद कुल पेड़ों की संख्या से तीन गुना ज्यादा पेड़ लगाने होंगे।

इसका मतलब यह नहीं है कि पेड़ महत्वहीन हैं। वन जैव-विविधता, वर्षा चक्र और पारिस्थितिक संतुलन के लिए जरूरी हैं। लेकिन हमें ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाने के साथ ही वास्तविक मुद्दे पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। वास्तविक मुद्दा अत्यधिक उपभोग है, जिसके परिणामस्वरूप कार्बन उत्सर्जन होता है : एक तरह का अदृश्य कचरा, जिसे हम अपने वायुमंडल में हर दिन, हर घंटे फेंकते हैं।

हर उत्पाद जो हम खरीदते हैं, हर उड़ान जो हम लेते हैं, हर कपड़ा, हर भोजन, हर गैजेट- यह सब कार्बन है। वास्तव में किसी भी सामग्री या उत्पाद का उपभोग कार्बन उत्सर्जन है। यहां तक कि हर सुबह वॉट्सएप पर गुड मॉर्निंग संदेश भेजने में भी लगभग 4 ग्राम कार्बन उत्सर्जन होता है।

इसका मतलब है कि आज कार्बन उत्सर्जन का अधिकांश हिस्सा कारखानों या बिजली संयंत्रों से नहीं आता है; वह मांग से आता है। उस व्यक्ति की मांग, जो किसी कारखाने या बिजली संयंत्र के उत्पाद का उपयोग करता है।

जब तक हम उपभोग के प्रश्न को संबोधित नहीं करते, तब तक कितने भी पेड़ लगाने से हम नहीं बच पाएंगे। दूसरे शब्दों में, जैसे कि पैरासिटामोल लेने से कैंसर का इलाज नहीं किया जा सकता है, वैसे ही जलवायु परिवर्तन की समस्या को सिर्फ पेड़ लगाने से हल नहीं किया जा सकता है। हमें और भी करना होगा।

सीमित संसाधनों वाले सीमित ग्रह पर असीमित उपभोग नहीं हो सकता। यह न केवल असंवहनीय है; यह असंभव है। विज्ञान, प्रौद्योगिकी और अर्थव्यवस्था के विकास के साथ हमारे ग्रह और उसके संसाधनों का आकार नहीं बढ़ रहा है, खनिज और मिट्टी नहीं बढ़ रही है।

इसलिए, हमें एक नया दर्शन अपनाने की जरूरत है : सीमित पृथ्वी, सीमित उपभोग। यह स्मार्ट, सचेत जीवन जीने के बारे में है। जो जरूरी है उसका उपयोग करें, जो टाला जा सकता है उसे टालें, जो टाला नहीं जा सकता है उसे कम से कम करें। और केवल वहीं उत्पादन करें जहां बिल्कुल जरूरी हो।

पिछले साल ही मैंने अपने प्रयासों के हिस्से के रूप में 400 से ज्यादा पेड़ लगाए- सुनियोजित तरीके से। यानी मैं पौधरोपण के बिलकुल खिलाफ नहीं हूं। लेकिन मैं समस्या मूल कारण की अनदेखी नहीं कर रहा हूं : और यह है अत्यधिक उपभोग से उत्सर्जन।

हमें लक्षणों का इलाज करना बंद करना चाहिए और मूल कारणों को संबोधित करना शुरू करना चाहिए। तो इस मानसून पौधे जरूर लगाएं, लेकिन थोड़ा रुकें और सोचें भी। अपनी आदतों, खरीदारी, कचरे पर सवाल उठाएं। प्रतीकात्मकता से ठोस कार्रवाई की ओर बढ़ें। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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Anuragbagde69@gmail.com

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