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- Sheila Bhatt’s Column America’s Friendship Is Going To Cost Pakistan Heavily
2 घंटे पहले
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शीला भट्ट वरिष्ठ पत्रकार
एक कहावत है कि घी गिरा तो खिचड़ी में। इसका मतलब यह है कि किसी कीमती चीज का छोटा नुकसान भी कभी-कभी आपके खाते में मुनाफे की तरह जुड़ जाता है। अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला बोलने के बाद भारत भी आज आश्चर्यजनक रूप से खुद को ऐसी स्थिति में पा रहा है, जिसमें उसे कुछ कूटनीतिक स्पेस मिल रहा है।
ट्रम्प ने बार-बार, और काफी नासमझीपूर्ण तरीके से भारत को पाकिस्तान के समकक्ष खड़ा करके उसकी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की है। वे अब तक कम से कम एक दर्जन से ज्यादा बार भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष-विराम कराने का श्रेय ले चुके होंगे।
लेकिन अब ईरान पर अमेरिका की बड़ी कार्रवाई के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के आलोचक इस बात को बेहतर ढंग से समझ पाएंगे कि ट्रम्प पाकिस्तान की तारीफ करने और भारत के परिपक्व कूटनीतिक रुख को कमतर आंकने में क्यों जुटे हुए थे।
वास्तव में यह भारतीय कूटनीति का पतन नहीं था, बल्कि यह पाकिस्तान पर अमेरिका की भू-रणनीतिक निर्भरता के कारण हुआ था, क्योंकि वह अमेरिका के जानी दुश्मन ईरान के साथ अपनी सीमा साझा करता है।
पिछले एक महीने से ट्रम्प के बेकाबू बयानों और भारत-अमेरिका के बिगड़ते रिश्तों को लेकर मोदी की कड़ी आलोचना हो रही थी। लेकिन जैसा कि विदेश मंत्री जयशंकर ने कई बार कहा है कि क्रिकेट मैच में हर ओवर की हर गेंद पर रन नहीं बनाए जा सकते, लेकिन इसके बावजूद कोई प्रतिभाशाली बल्लेबाज शतक लगाकर टीम को मैच जिता सकता है।
कई लोगों को लग रहा था कि पाकिस्तान में क्रिप्टोकरंसी के निजी सौदे करके ट्रम्प भारत को नुकसान पहुंचा रहे थे, लेकिन उन पर इससे कहीं ज्यादा दबाव था। मध्य-पूर्व के इतिहास को बनाने और बिगाड़ने में आज अमेरिका के हित दांव पर लगे हैं।
पाकिस्तान अमेरिका के लिए एक पेंच था। और उसे उस बड़ी मशीनरी में कसकर फिट किया जाना था, जिसे परमाणु महत्वाकांक्षाओं वाली इस्लामी क्षेत्रीय ताकत ईरान को कुचलना था। अगर पीछे मुड़कर देखें तो आज भारत द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के सबसे महत्वपूर्ण युद्धों में से एक से सुरक्षित दूरी पर है।
ट्रम्प ने खुद ही भारत को अमेरिकी पोजिशन से दूर रखकर हमारा काम आसान कर दिया। ट्रम्प की भारत विरोधी बयानबाजी भारत को ईरान पर हमले के दाग से बचने में मदद करेगी। ईरान से भारत के सभ्यतागत संबंध हैं।
ईरान ने भले ही कई मामलों में भारत की सक्रिय मदद नहीं की हो, लेकिन चूंकि भारत ने उसके साथ एक दीर्घकालिक गैस समझौता किया है, इसलिए उसने कभी भी भारत के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया है। ईरान और भारत के बीच स्थिर व्यापार अनुबंध तो हैं ही, दोनों के लोग भी परस्पर संपर्क में रहते आए हैं।
दूसरी ओर, पाकिस्तान को ट्रम्प का ‘मजबूत समर्थन’ उसके फील्ड मार्शल असीम मुनीर के लिए घातक साबित हो सकता है। अब यह साबित हो चुका है कि पाकिस्तान ने बलूचिस्तान के क्वेटा एयरबेस का इस्तेमाल करने के अमेरिकी दबाव के सामने घुटने टेके हैं।
दुनिया जान गई है कि ट्रम्प ने व्हाइट हाउस में एक लंच के बदले मुनीर से कई गुना ज्यादा वसूल कर लिया है। याद रखें कि यह युद्ध ईरान बनाम इराक युद्ध की तरह एक साम्प्रदायिक संघर्ष नहीं है, न ही यह शिया बनाम सुन्नी की लड़ाई है।
कोई चाहे तो इसे जल्दबाजी में सभ्यताओं का टकराव करार दे सकता है। लेकिन यह ओसामा बिन लादेन को खोज निकालने जैसा एकसूत्रीय अमेरिकी अभियान भी नहीं है। ट्रम्प श्वेत ईसाई वर्चस्व की राजनीति का प्रतिनिधित्व करते हैं। जब अमेरिका ईरान पर हमला करता है तो वह सिर्फ एक शिया देश पर हमला नहीं कर रहा होता है। ऐसे में पाकिस्तान का अमेरिका के अंगूठे के नीचे काम करना मुनीर के लिए आत्मघाती साबित होगा।
अब आपको समझना चाहिए कि अमेरिका द्वारा ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले के तुरंत बाद मोदी ने जो पहला ट्वीट किया, उसमें उन्होंने ईरान के राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियान के साथ अपनी बातचीत के बारे में क्यों बताया था। मोदी ने कहा कि उन्होंने हालात पर गहरी चिंता जताई है और तत्काल तनाव कम करना, बातचीत और कूटनीति ही आगे का रास्ता है।
भारत का यह रुख ऑपरेशन सिंदूर के दीर्घकालिक प्रभावों को बदल देता है और साथ ही ट्रम्प ने भारत और पाकिस्तान को एक साथ जोड़ने के लिए जो कुछ भी कहा और किया, उसे भी बदल देता है। दूसरी तरफ, ट्रम्प के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की मुनीर की सिफारिश पाकिस्तान को चैन की नींद नहीं सोने देने वाली है।
पाकिस्तान अमेरिका के लिए एक पेंच था। और उसे उस बड़ी मशीनरी में कसकर फिट किया जाना था, जिससे ईरान को कुचलना था। पीछे मुड़कर देखें तो आज भारत अमेरिका-ईरान के इस महत्वपूर्ण युद्ध से एक सुरक्षित दूरी पर है। (ये लेखिका के अपने विचार हैं)