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Tuesday, 1 July 2025
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Shekhar Gupta’s column – Linking India with Pakistan is an insult to us | शेखर गुप्ता का कॉलम: भारत को पाक से जोड़ना हमारा अपमान है

Shekhar Gupta’s column – Linking India with Pakistan is an insult to us | शेखर गुप्ता का कॉलम: भारत को पाक से जोड़ना हमारा अपमान है

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  • Shekhar Gupta’s Column Linking India With Pakistan Is An Insult To Us

4 घंटे पहले

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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’

किसी खोटे सिक्के या अवांछित चीज की तरह ‘हाइफन’ शब्द यानी हमें पाकिस्तान से जोड़ने वाला विराम-चिह्न फिर से उभर आया है। इसकी वापसी इसलिए भयानक है क्योंकि तीन दशकों से हमारी यहां की सरकारें भारत और पाकिस्तान को एक ही तराजू से तौलने की बड़ी ताकतों (अमेरिका) की कोशिशों का प्रतिकार करती रही हैं। इससे तीन बातें उभरती हैं।

पहली बात को हम ‘जीरो-सम गेम’ कह सकते हैं यानी वह खेल जिसमें एक को जितना लाभ होता है, दूसरे को उतनी ही हानि होती है। अमेरिका अगर उपमहादेश को इस रूप में देखता है तो उसे रिश्ते में संतुलन बनाकर चलना होगा। लेकिन भारत इस तुलना को नापसंद करता है।

उसका मानना है कि भारत को पाकिस्तान से जोड़ना उसका अपमान है। दूसरी बात है ‘हैसियत से इनकार’। भारत की ‘व्यापक राष्ट्रीय शक्ति’ (सीएनपी) में जिस तरह वृद्धि हो रही है, उसके कारण उसे यह मंजूर नहीं है कि अमेरिका इस क्षेत्र को भारत-पाकिस्तान के चश्मे से देखे। यह दोहरी परेशानी का कारण है क्योंकि चीन भारत की अहमियत को खारिज करने में जी-जान लगाकर जुटा हुआ है।

भारत तो अमेरिका से यही उम्मीद करेगा कि इस होड़ में वह उसका साथ दे। इसलिए अमेरिका अगर पाकिस्तान के लिए अच्छी-अच्छी बातें कह रहा है तो यह उसके लिए कष्टदायक है। तब फिर, ‘क्वाड’ का क्या मतलब है? हम तो यह मान कर चल रहे थे कि चीन को घेरने की योजना में हम दोनों साझीदार हैं।

और तीसरी बात है- मध्यस्थता की वापसी। भारतीय जनमत मानता है कि ट्रम्प ने हमारी तीन दशकों की मेहनत पर यह कहकर पानी फेर दिया है कि भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष-विराम उन्होंने ही करवाया है। हमें पता चल गया है कि उनकी दिलचस्पी मध्यस्थता में नहीं खुद श्रेय लेने में है।

पाकिस्तान ऐसी बातों को लपक लेता है तो आप उसे दोष नहीं दे सकते। उसका मानना है कि इस क्षेत्र में ट्रम्प की नई दिलचस्पी परमाणु युद्ध के खतरे के कारण जगी है। इसलिए, वो सोचता है कि उसने दुनिया का ध्यान फिर से एटमी खतरे की ओर मोड़ दिया है, जबकि भारत आतंकवाद के खिलाफ ग्लोबल जंग के नाम पर साझेदारी बनाने की दशकों से कोशिश करता रहा है।

इस जादुई जोश के साकार रूप हैं बिलावल भुट्टो, जिन्होंने अपने अथक बड़बोलेपन में यह बयान दे दिया कि जरूरत पड़ी तो अमेरिका भारत को कान पकड़कर भी बातचीत की मेज तक खींच लाएगा। पाकिस्तानी सत्तातंत्र अमेरिका के साथ कमजोर हुए अपने रिश्ते को फिर से मजबूत करने के लिए जी-जान लगाकर जुटा हुआ है, यहां तक कि गुप्त बातें भी उजागर कर रहा है।

लेकिन चुपके से ट्रम्प के करीब खिसक आने वाला हर शख्स अंत में यही गाना गुनगुनाने लगता है : ‘इक बेवफा से प्यार किया… हाय रे हमने ये क्या किया’। ये लेन-देन वाले ट्रम्प हैं, जो किसी के प्रति वफादार नहीं हैं। उनका पूरा ध्यान अपने घरेलू जनाधार पर है। अमेरिका का जो भी पार्टनर इसे कबूल नहीं करता उसे विश्वासघात और अपमान महसूस होगा।

अच्छी बात यह है कि हमारे नीति-नियंता भावुकता के प्रदर्शन और चिंता की सार्वजनिक अभिव्यक्ति से बचते रहे हैं। वे फिलहाल जो महत्वपूर्ण है उस मसले को लेकर चुपचाप आगे बढ़ते रहे हैं। वह मसला है, भारत-अमेरिका व्यापार समझौता।

अगर यह संपन्न हो जाता है तब काफी खलबली शांत हो जाएगी। वैसे भी, कोई नहीं कह रहा है कि भारत और पाकिस्तान को कश्मीर पर बात करनी चाहिए, या यह कि हम मध्यस्थता करने को तैयार हैं। मैं कह नहीं सकता कि ट्रम्प को इस तरह के किसी मसले की जानकारी है भी या नहीं।

इसके अलावा, ट्रम्प पूरी दुनिया को इतिहास, तथ्यों और विचारधारा से मुक्त अपने नजरिए के अनुसार नया रूप दे रहे हैं। वे ‘नाटो’ को निरर्थक बना रहे हैं, पश्चिमी गठबंधन का मजाक बना रहे हैं, कनाडा के प्रधानमंत्रियों को लगातार अपमानित करते रहे हैं और नेतन्याहू के प्रति अधीरता का प्रदर्शन कर रहे हैं। वे जेलेंस्की को अपमानित करते हैं और पुतिन की प्रशंसा करते हैं। उनसे यह अपेक्षा हकीकत से परे होगी कि वे हमें पाकिस्तान से अलग माने जाने के हमारे आग्रह से अवगत भी होंगे या उसकी उन्हें परवाह भी होगी।

मोदी सरकार ने सोशल मीडिया पर हो रहे शोर-शराबे के प्रति फिलहाल जो रवैया अपनाया है, वह बुद्धिमानी भरा है। अमेरिकी उप-विदेश मंत्री पद के लिए नामजद पॉल कपूर ने अपनी नियुक्ति के बारे में फैसला करने वाली कमेटी के सामने जो बयान दिया, भारत को उस पर कोई आपत्ति नहीं हुई।

लेकिन उनके इस एक वाक्य ने भारत में कई लोगों को नाराज कर दिया कि जब भी अमेरिका के हित के लिए जरूरी होगा, वे पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करेंगे। और, सेंटकॉम कमांडर जनरल माइकल कुरिल्ला ने पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ जंग में बड़ा सहयोगी जो बताया, वह पेंटागन द्वारा किए गए भू-रणनीतिक विभाजन का परिणाम है, जिसके तहत सेंटकॉम पाकिस्तान और भारत को पैसिफिक कमांड के अंदर मानता है।

आप किसी भी क्राइम रिपोर्टर से पूछ लीजिए, वह यही बताएगा कि पुलिस के किसी थाने के एसएचओ की पहली चिंता यही होती है कि उसके इलाके में अपराध न हों, चाहे इसके लिए बदमाशों से सौदा ही क्यों न करना पड़े। लेकिन पैसिफिक कमांड के प्रमुख से आपको अलग जवाब मिल सकता है।

इससे भी बढ़कर, हमारे टीवी समाचार चैनलों की अफवाह फैक्ट्री ने अपनी एक कहानी गढ़ डाली कि पाकिस्तान के नवनियुक्त फील्ड मार्शल को अमेरिकी आर्मी डे परेड के लिए आमंत्रित किया गया था। गनीमत है कि हमें व्हाइट हाउस के इस बयान पर जनता की प्रतिक्रिया का सामना नहीं करना पड़ा कि अमेरिका ऐसे किसी मेहमान को न्योता नहीं भेज रहा है। भारतीय जनमत पर इस तरह की तुनकमिजाजी हावी रहती है, जो ‘हमें यह अकेले करना है’ वाले जुनून को पसंद करती है।

अमेरिका इस क्षेत्र को भारत- पाक चश्मे से नहीं देखे… भारत इस तुलना को नापसंद करता है। उसका मानना है कि भारत को पाकिस्तान से जोड़ना उसका अपमान है। भारत की राष्ट्रीय शक्ति में जिस तरह से लगातार बढ़ोतरी हो रही है, उसके कारण उसे यह मंजूर नहीं है कि अमेरिका इस क्षेत्र को भारत-पाकिस्तान के चश्मे से देखे। (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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