3 दिन पहले
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शेखर गुप्ता, एडिटर-इन-चीफ, ‘द प्रिन्ट’
अपने सीने पर चार ‘स्टार’ के तमगे चमकाने वाला कोई पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष जो नहीं कर पाया, वह क्या पांचवें ‘स्टार’ का तमगा चमकाकर कर पाएगा? और क्या भारतीय सेना को परेशान होना चाहिए? इसका छोटा-सा जवाब यह है कि भारत को पाकिस्तानी फौज से हमेशा सावधान रहना चाहिए, और हम रहते भी हैं।
आसिम मुनीर को यह जो विचित्र किस्म का प्रमोशन दिया गया है, उसने इस सावधानी को थोड़ा बढ़ाया है। पाकिस्तान और इस उपमहादेश के पूरे इतिहास में किसी को पांचवें ‘स्टार’ से सम्मानित करने की यह दूसरी घटना है (पांच स्टार वाले हमारे करिअप्पा, मानेकशॉ और अर्जन सिंह को रस्मी बेटन से सम्मानित किया गया था)।
आधुनिक सेनाओं में पांचवें स्टार से सम्मानित करने के उदाहरण दुर्लभ हो गए हैं। किसी महत्वपूर्ण देश का उदाहरण देना हो तो इजिप्ट के अब्देल फत्तह अल-सीसी का दिया जा सकता है। ताकतवर अमेरिकियों ने भी इस ऊंची उपाधि को मार्शल, मैकआर्थर, आइजनहॉवर और ब्रैडले जैसे नामों में दफन कर दिया है।
असैनिक सरकार का तख्ता पलटकर सत्ता हथिया लेना पाकिस्तान में अब उबाऊ हो गया है। उन्हें यह सब करने की जरूरत नहीं है। हमारा विश्लेषण अब इस पर केंद्रित होना चाहिए कि फील्ड मार्शल आसिम मुनीर जनरल आसिम मुनीर से कितने भिन्न होंगे? प्रोपगंडा के लिए जीत का जश्न मनाना अलग बात है, लेकिन उन्हें मालूम है कि उनकी फौज को भारी झटका लगा है।
भारतीय विमानों को मार गिराने के अपुष्ट दावे लोगों को कुछ समय के लिए ही खुश कर सकते हैं। ध्वस्त हुए हवाई अड्डों (सभी सिंधु नदी के पूरब में स्थित) और जैश-लश्कर के मलबे में तब्दील बड़े-बड़े ठिकानों की तस्वीरें ही छाई रहेंगी। वे अपनी छाती चाहे जितनी ठोक लें, पांचवें स्टार की चमक जमीनी हकीकत को फीकी नहीं कर पाएगी। इसलिए वे कुछ-न-कुछ तो करना चाहेंगे ही। उनके लिए यह जरूरी भी होगा।
मैं तो यह बाजी भी लगा सकता हूं कि वे हमारी कल्पना से पहले ही ऐसा कुछ कर डालेंगे। जिसे पाकिस्तानी फौज की “सात साल में उभरने वाली खुजली’ कहा जाता है, उसके तहत अतीत में जो बड़े आतंकवादी हमले और उनके जो भारतीय जवाब होते थे, वे उनमें इतना खौफ पैदा करते थे कि सात साल तक शांति रहती थी। मुनीर क्या करेंगे, इसके बारे में अटकलें ही लगा सकते हैं, लेकिन पक्के तौर पर मैं एक बात कह सकता हूं।
अगर आप अगले छह-सात साल के बारे में सोच रहे हों, तो मैं निश्चित बता सकता हूं कि मुनीर कहां रहेंगे। पाकिस्तान की सियासत, संस्कृति और इतिहास बताता है कि वह किसी अच्छी स्थिति में नहीं रहेंगे। लेकिन पहले हम यह देखें कि जब वे चार स्टार वाले थे तभी कितनी जबरदस्त ताकत हासिल कर चुके थे। जिस असैनिक सरकार के ‘निर्वाचन’ में उनकी मिलीभगत थी, वह पहले ही उनके आगे दंडवत थी।
अपने ‘सिपहसालार’ (पांचवां स्टार दिए जाने से पहले इस सरकार के अगुआ मुनीर को यही कहा करते थे) के सामने छोटे शरीफ, शहबाज की चापलूसी भरी बोली, और मुद्राओं से क्या एक वजीरे-आजम का कोई रुतबा झलकता है? सो, आप उन्हें प्रशंसक, दरबारी, जो चाहे कह सकते हैं।
मुनीर तमाम अहम मसलों पर बोलते रहे हैं, मुल्क को एक ट्रिलियन डॉलर वाली अर्थव्यवस्था (फिलहाल जो महज 410 अरब वाली है) बनाने तक के वादे करते रहे हैं। फौज की बढ़ी हुई ताकत को चुनौती देने वाले एकमात्र नेता इमरान खान को उन्होंने जेल में डाल रखा है। इससे पहले वे उनकी पार्टी पर प्रतिबंध लगाकर उसे चुनाव लड़ने से रोक चुके हैं।
मुनीर की पसंदीदा पार्टियों का गठबंधन (पीएमएल-एन के नेतृत्व वाला) यह एकतरफा चुनाव भी न जीत सका, लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ा। उसे उन्होंने सत्ता सौंप दी। न्यायपालिका ने समर्पण कर दिया है। यहां तक कि उसने फौजी अदालतों को यह अधिकार सौंप दिया है कि वे देशद्रोह समेत कुछ सबसे गंभीर अपराधों के लिए नागरिकों पर मुकदमा चला सकती हैं।
कठपुतली संसद को उन्होंने संविधान की हत्या करने वाले संशोधनों पर मुहर लगाने को मजबूर किया है और अपना कार्यकाल भी बढ़वा लिया है। मुनीर ने सब कुछ अपने चंगुल में कर लिया है। अब आगे क्या होगा? फील्ड मार्शल की कुर्सी के नजरिए से देखिए।
अगर वे आगे के सात वर्षों पर नजर डालें तो यही उम्मीद कर सकते हैं कि म्युचुअल फंड के साथ दी जाने वाली यह वैधानिक चेतावनी उन पर भी लागू होगी कि ‘पिछले प्रदर्शन को भावी प्रदर्शन की गारंटी न मानें’। पिछला प्रदर्शन तो उनसे यही कहेगा कि सियासी अरमान रखने वाले हरेक ‘महान’ सेनाध्यक्ष का बुरा हश्र ही हुआ : हार झेलनी पड़ी, मुकदमों का सामना करना पड़ा, देश से निकाले गए, चार में से तीन तो मार डाले गए। अय्यूब, याह्या, जिया, मुशर्रफ, चारों एक लाइन में खड़े हैं।
विस्तार से देखें तो जुल्फिकार अली भुट्टो तानाशाह बने और उनका भी यही हश्र हुआ। मुनीर के दो पूर्ववर्ती, कमर जावेद पाहवा और रहील शरीफ वर्दी में होते हुए चाहे जितने भी ताकतवर रहे हों, आज ओझल हो गए हैं। कोई पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष यह खुशनुमा ख्याल नहीं पालता कि वह गोल्फ खेलते हुए रिटायरमेंट वाली जिंदगी जीएगा।
पाकिस्तान की देन है : ‘वर्णसंकर’ सरकार। एक फील्ड मार्शल है, एक बंधुआ सरकार है, और उन्हें चुनौती देने वाला एकमात्र शख्स जेल में बंद है। तीन दशक पहले जब फौजी तंत्र ने नवाज शरीफ को बर्खास्त किया था तब उन्होंने एक इंटरव्यू में मुझसे तीखे तेवर के साथ कहा था कि यह कैसा सिस्टम है? आधा तीतर, आधा बटेर।
अगली बार जब वे बहुमत से सत्ता में वापस आए तब कहा था कि वे इस सिस्टम में सफाई लाने की कोशिश करेंगे कि या तो वे (फौज) ही राज करें, या हम (निर्वाचित नागरिक)। मैं नहीं जानता, आज हम जो देख रहे हैं उसके बारे में वे क्या कहेंगे।

किसी भी पाक फौज प्रमुख का अंत अच्छा नहीं हुआ…
कोई पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष यह खुशनुमा ख्याल नहीं पालता कि वह गोल्फ खेलते हुए रिटायरमेंट वाली जिंदगी जीएगा। पाकिस्तान की देन है : ‘मिली-जुली हुकूमत’। एक फील्ड मार्शल है, एक बंधुआ सरकार है, और उन्हें चुनौती देने वाला एकमात्र शख्स जेल में बंद है।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)