नई दिल्ली4 मिनट पहले
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हर्ष गोयनका, चेयरमेन, आरपीजी ग्रुप
रिटायरमेंट’- यह शब्द सुनते ही लगता है जैसे जिंदगी ने ब्रेक मारा हो। एक शालीन विराम, एक विनम्र विदाई। एक राज बताऊं? रिटायरमेंट पूर्णविराम नहीं है। यह तो एक अर्धविराम है। यह जिंदगी की रफ्तार में बदलाव है- भागदौड़ से शांति की ओर, रणनीति से संवेदनशीलता की ओर। हममें से अधिकतर ने दशकों तक घड़ी के इशारे पर जीवन जिया है- मीटिंग्स, डेडलाइन, फैसले, फॉलो-अप। आपकी कलाई की घड़ी आपकी सबसे वफादार साथी रही और मोबाइल… सबसे चिपकू दुश्मन। हां, सफलता मिली है, पर समय की असली ‘लग्जरी’ शायद कभी नहीं मिली। भारत में कोई सच में रिटायर नहीं होता। हम बस अपने गियर बदलते हैं- ‘बॉस’ से ‘सीनियर एडवाइजर’, ‘निर्णयकर्ता’ से ‘प्यारे अंकल’। ईमेल सिग्नेचर छोटा हो जाता है, पर वॉट्सएप संदेश लंबे होने लगते हैं। यह ‘विदाई’ नहीं, बल्कि एक ‘पुनःपरिभाषा’ है। अब आप मीटिंग रूम की जगह पार्क में मिलते हैं, कॉन्फ्रेंस कॉल की जगह बच्चों की हंसी सुनते हैं।
रिटायरमेंट की पहली खुशी बहुत सरल होती है- कॉफी। वह नहीं जो मीटिंग के बीच में जल्दी से पी जाती है, बल्कि वह जो धीरे-धीरे चुस्कियों में ली जाती है, जब बालकनी में धूप पसरी होती है। सुबह 6 बजे उठिए… और फिर पाएं- कोई इमरजेंसी नहीं, कोई मीटिंग नहीं। सिर्फ सन्नाटा और खुला कैलेंडर। पहले डर लगेगा। फिर राहत मिलेगी। अब आप दिन को मीटिंग्स और डील्स से नहीं, आम के पकने और टहलने की दूरी से मापेंगे। फिटबिट अब आपका जज नहीं, साथी बन जाएगा। कभी बादलों में शक्लें खोजिए। हो सकता है एक में आपको बोर्डरूम टेबल दिखे… और दूसरे में पुरानी सेक्रेटरी डेडलाइन के पीछे भागती हुई।
आपका पूरा करियर आपकी अनिवार्यता की पहचान बना रहा। अब समय है- बेहद शांति से अप्रासंगिक होने का। अब कोई आपकी मंजूरी नहीं मांगता। आप सलाह दीजिए जिसे कोई ना माने और मुस्कुराइए जब नई पीढ़ी उन्हीं समस्याओं से जूझे- पर अब एप्स के सहारे। अब आप छत का पिलर नहीं, बरामदा हैं- जहां किस्से सुनाए जाते हैं और नींद खुलकर ली जाती है और बरामदे, पिलर्स से कहीं मजेदार होते हैं और सबसे प्यारी बात? मीटिंग के बुलावे पर कहिए-‘माफ कीजिए, मेरी नींद का समय है!’ या कहिए-‘आज मेरा लूडो का टूर्नामेंट है, बिजी हूं!’
रिटायरमेंट का मतलब काम से मुक्ति नहीं- चुनाव की आजादी है। आप बन सकते हैं: मुफ्त के फूड क्रिटिक, फिलॉसफर ऑन डिमांड और फुलटाइम दादा-दादी (सबसे इमोशनल नौकरी)। पेंटिंग क्लास जॉइन कीजिए। झील बनाइए, जो दिखे पिज्जा जैसी। कोई बात नहीं, एब्स्ट्रैक्ट आर्ट में भविष्य उज्ज्वल है। अब किताबें भाषण के लिए नहीं, मजे के लिए पढ़िए। म्यूजिक सुनिए बिना अर्थों को तोड़े। योग कीजिए- भले ही शरीर शवासन की सलाह दे। कॉर्पोरेट दौड़ में हम कई लोगों को खो देते हैं- अनजाने में, तेजी में। अब आपके पास समय है। एक पुराना दोस्त जो सिर्फ ‘कॉल करूंगा कभी’ बन चुका था- अब उसे कॉल कीजिए। पुराने कॉलेज के रूममेट को चिट्ठी लिखिए। ये लोग ‘नेटवर्किंग’ नहीं हैं- ये वो हैं जो आपके सबसे बुरे हेयरकट, किफायती कारनामों के साथ आपके सपने भी याद रखते हैं। कभी-कभी आप पार्क में, लिफ्ट में, या पोते के स्कूल प्ले में नए दोस्त भी बना लेते हैं। दोस्ती कभी रिटायर नहीं होती।
रिटायरमेंट सिखाता है कुछ ना करना भी एक काम है। आप सितारों को देखकर कविता लिख सकते हैं। बिना किसी मंजिल के गाड़ी चला सकते हैं और कभी-कभी सिर्फ इसलिए झपकी ले सकते हैं क्योंकि सोफा बहुत प्यारा लग रहा था। अब आप चींटियों की लाइन देखते हैं और उनके अनुशासन पर तालियां बजाते हैं। पड़ोसी से चर्चा कीजिए कि ये आवाज कोयल की थी या खोए मोबाइल की रिंगटोन… और फिर मिल-बांटकर चाय-बिस्किट खाइए। और उस क्षण आपको पता चलता है कि फुर्सत की सबसे मीठी आवाज, चाय में डूबा बिस्किट होती है। कंपनी चलाने वाले अक्सर समझते हैं कि रिटायरमेंट मतलब कंट्रोल खोना है। नहीं- ये दृष्टिकोण बदलने का नाम है। सफल उत्तराधिकार सिर्फ कागजी प्रक्रिया नहीं, एक दृष्टि है। जब उत्तराधिकारी को आपने प्रशिक्षित किया हो, तो खुद को पीछे करना एक उदार कर्म बन जाता है। आप पीछे हटते हैं ताकि औरों को उभरने का मौका मिले। जब यह सम्मान से किया जाए, तो यह सबसे सुंदर विरासत होती है। कभी-कभी सबसे बड़ा नेतृत्व वही होता है जब आप चुपचाप पीछे खड़े हो जाते हैं।
रिटायरमेंट ‘रेलवेंस’ छोड़ना नहीं- नई परिभाषा है। कुछ नया सीखिए- अपने पोते से AI, या इंस्टाग्राम रील्स (सावधानी: वायरल भी हो सकते हैं, और हंसी का पात्र भी)। कुकिंग क्लास लीजिए, कुछ बर्तन जलाइए। दोस्त बनाइए जो हाइकू लिखते हैं, बर्ड वॉचिंग करते हैं- सब कुछ जो आप पहले कभी नहीं थे। रिटायरमेंट आपको बिना किसी लिंक्डइन सिफारिश के नए पैशन खोजने का लाइसेंस देता है। यह समय है फिर से छात्र बनने का- बिना परीक्षा, बिना प्रेशर, सिर्फ आनंद के लिए सीखना।